स्वामी विवेकानंद : तस्वीर लगाने के साथ ही विचारों को समझा जाए…
Swami Vivekanand Jayanti
Swami Vivekanad Jayanti : विवेकानंद क्रांतिकारी साधु थे। उनको पढ़ना किसी क्रान्तिकारी के विचारों को पढ़ना है। ऐसे साधु जिनमें आधुनिकता व परंपरा का समन्वय था। वे जितना धर्म को जरूरी समझते थे, उतना विज्ञान को। शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में वे अमेरिका वासियों को ‘मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनो’ उन्हें प्रभावित करने के लिए नहीं कह रहे थे, बल्कि वे मनुष्य मात्र की समानता पर यकीन रखते थे।
वे हर बात को आंख मूंदकर मानने के पक्षधर नहीं थे, बल्कि अध्ययन व तर्क की कसौटी पर कसकर राय बनाने पर यकीन रखते थे। उन्होंने न सिर्फ भारतीय दर्शन व ज्ञान परंपरा का विस्तृत अध्ययन किया, बल्कि अपने समय के पश्चिमी विचारकों ह्यूम, कांट, ऑगस्ट काम्टे, मिल व डार्विन को विस्तार से पढ़ा। स्पेंसर की किताब ‘एजुकेशन’ का उन्होंने बंगाली में अनुवाद किया। उन्हें तत्कालीन भारत की सबसे बड़ी समस्या भूख, गरीबी, अन्याय व शोषण लगती थी। अपने मशहूर नारे ‘उठो, जागो..’ में जागने से उनका आशय भूख व गरीबी के विरुद्ध कार्य करने से था। ईश्वर प्राप्ति का मार्ग वे गरीबों तथा वंचितों की सेवा में देखते थे। ‘दरिद्र नारायण’ उन्हीं का दिया हुआ शब्द है।
अमेरिका में धर्म संसद में सम्मिलित होने से पूर्व वे संपूर्ण भारत का भ्रमण कर चुके थे। भारत की गरीबी और भूख से बहुत दुखी थे, इसे दूर करने के प्रयासों में वे देश के अमीर लोगों से निराश हो चुके थे। विदेश जाने का उनका मूल उद्देश्य देश की गरीबी और भूख को समाप्त करने के लिए सहायता प्राप्त करना था। अपने एक भाषण में उन्होंने अमेरिका में कहा था कि भारत को धर्म की नहीं भोजन की जरूरत है। धर्म तो हमारे पास है ही।
उनका मानना था कि वे लोग जो अपने आप कुछ नहीं सोचते, धर्म के संसार में अभी जन्म ही नहीं ले पाए हैं। धर्म को वे वैयक्तिक खोज मानते थे। स्वर्ग-नरक और अवतार को वे मूर्खताएँ कहते थे। उनका कहना था यदि कोई धर्म, तर्क परीक्षण में असफल हो जाता है तो वह धर्म नहीं अंधविश्वास है। विवेकानंद तर्क और आत्मानुभव के बगैर किसी वस्तु तथा सिद्धांत पर यकीन नहीं करते थे, धर्म और ईश्वर पर भी नहीं। उनके अनुसार ईश्वर ने मनुष्य के मस्तिष्क में जन्म लिया। मनुष्य ही ईश्वर है।
विवेकानंद के अनुसार सारी पूजाओं का सार है, निर्मल होना और दूसरों के लिए भला होना। वे कहते थे, अपनी मुक्ति खोज रहे हो तो नरक में जाओगे। स्वर्ग का रास्ता सभी की मुक्ति व भलाई में है। ईश्वर को पाना चाहते हो तो मनुष्यों की सेवा करो।
विवेकानंद भारतीय विरासत के उजले पक्ष से प्रेम करते थे, मगर संकीर्णता, सांप्रदायिकता व धर्मान्धता के आलोचक थे। धार्मिक विद्वेष से परे सभी धर्मों में मौजूद आध्यात्मिक समानता को स्वीकार करते थे। वे भारत को एक समृद्ध देश के रूप में देखना चाहते थे, मगर उनका कहना था कि यह समृद्धि तभी आ सकती है, जब अपनी कमियों को खुले मन से स्वीकार किया जाए। जरूरत इस बात की है कि विवेकानंद की तस्वीरों को लगाने के साथ उनके विचारों को भी पढ़ा व समझा जाए।
लेखक
दिनेश कर्नाटक
प्रसिद्ध साहित्यकार व शिक्षक