राज्य की 42 प्रतिशत लड़कियाें में खून की कमी, आखिर लड़कों में भी क्यों बढ़ रही यह समस्या?
Health Update: Uttrakhand
Health Update: प्रसन्नचित्त डेस्क। भले ही स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ने लगी हैं और जागरूकता का स्तर भी बढ़ रहा है. इसके बावजूद अभी भी बहुत कमियां हैं. उत्तराखंड में लड़कियों में खून की कमी का मामला कोई नया नहीं है, पहले से ही ऐसी स्थिति रही है. इसके पीछे खानपान, रहन-सहन और सामाजिक सोच भी जिम्मेदार है. वर्तमान में जिस तरह की जीवनशैली ( Lifestyle) हो गई है और खानपान में फास्ट फूड (Fast Food Culture) का कल्चर बढ़ गया है. इसका सीधा असर सेहत पर पड़ रहा है. खासकर लड़कियां इससे अधिक प्रभावित हैं, लेकिन अब लड़कों की संख्या भी बढ़ने लगी है. चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में समय रहते सचेत हो जाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में गंभीर बीमारी की आशंका से बचा जा सके.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वें- पांच (NFHS) की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 15 से 19 वर्ष तक के लड़के व लड़कियों के शरीर में खून की मात्रा को लेकर बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड(UTTRAKHAND) में पहले, 15 से 19 वर्ष तक की करीब 50 प्रतिशत लड़कियां शरीर में खून(Lack of blood) की कमी की समस्या से जूझ रही थीं. जबकि लड़कों के मामले में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत था, लेकिन हाल में आई एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लड़कियों की स्थिति में सुधार आया है. अब 42 प्रतिशत लड़कियों में ही खून की कमी पाई गई है जबकि लड़कों में समस्या बढ़ रही है. उत्तराखंड में अब 27 प्रतिशत लड़के खून की कमी की समस्या से ग्रस्त पाए गए हैं.
न्यूट्रिशन प्रोग्राम के बावजूद स्थिति बदहाल
उत्तराखंड में 15 से 19 साल के लड़के-लड़कियों को खून की कमी की समस्या से बाहर निकालने के लिए कई प्राेग्राम चल रहे हैं. इसमें न्यूट्रेशन प्रोग्राम भी है. महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए जा रहे इस कार्यक्रम के तहत आयरन की गोलियां दी जाती हैं. लड़कियों में तो इन दवाओं का कुछ असर दिखता है लेकिन लड़कों में दवा खाने के बाद भी खून की समस्या बढ़ रही है.
दूसरे उम्र के लोगों में सुधार
इस सर्वे के अनुसार, छह से 59 साल के लोगों में पहले 60 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी थी जो अब घटकर 58 प्रतिशत रह गई है. 15 से 49 साल आयु वर्ग की पहले 47 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में पहले खून की कमी थी जो अब 46 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है. पर 15 से 19 साल के लड़कों की स्थिति गिरावट दर्ज की गई है.
जानें विशेषज्ञ की राय, क्या है हकीकत
उत्तराखंड के वरिष्ठ फिजीशियन व इंडियन मेडिकल एसोसिसएशन के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष डा. दिनेश चंद्र पंत मानते हैं कि जहां तक महिलाओं में खून की कमी का कारण है, खानपान इसकी बड़ी वजह है. दूरस्थ क्षेत्रों में पर्याप्त पौष्टिक भोजन न होना है. दूसरा शहरी क्षेत्रों में भी यह समस्या बढ़ी है. इसलिए कि लड़कियों यानी युवाओं में फास्ट व जंक फूड का कल्चर बढ़ गया है. यही कल्चर युवाओं के शरीर को खोखला कर रहा है. साथ ही निष्क्रिय जीवनशैली भी बढ़ा कारण है.
डा. पंत परामर्श देते हैं कि अब जागरूकता के तमाम टूल्स हैं. सरकार की योजना चला रही है. हमें भी अपने सेहत को दुरुस्त करने के लिए जागरूक व सजग होना होगा. पौष्टिक भोजन करने के साथ ही व्यायाम, योग को जीवन का हिस्सा बनाना होगा. तभी बात बनेगी.