मानसिक स्वास्थ्य

मनोविज्ञानी डा. रश्मि पंत बता रही हैं, परिवार व समाज से दूर केवल आर्थिक सफलता के पीछे भागना ही तनाव

World Mental Health Day: 10 October

अगर हम सभी कार्यों को संतुलित होकर करते हैं. रोजमर्रा की चुनौतियों का सामना आसानी से कर लेते हैं तो समझना चाहिए कि हमारा मन स्वस्थ है. हम सकारात्मक (Positive)होने की दिशा की तरफ हैं. ऐसे में हमें दुनिया में बहुत कुछ अच्छा दिखेगा. हर काम में मन लगेगा. रिश्ते अच्छे बने रहेंगे. यानी कि हमारा चित्त प्रसन्न (Prasannachitt) रहेगा.

मानसिक स्वास्थ्य क्यों महत्वपूर्ण है?
सीधी सी बात यह है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य ( Menta Health) ठीक नहीं होगा तो इसका असर हमारे सभी कामों में दिखाई देगा. तनाव ( Stress) हावी रहेगा. किसी से भी संबंध अच्छे नहीं रह पाएंगे. रचनात्मक कार्य नहीं कर पाएंगे. अपनी क्षमता का भी उपयोग नहीं कर सकेंगे. इस तरह की समस्याओं के समाधान के लिए हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की जरूरत पड़ती है.

अधिकांश लोगों में दिखते हैं ये लक्षण
मानसिक रूप से स्वस्थ न होने की स्थिति में अधिकांश लोगों में कुछ लक्षण कॉमन होते हैं. इसमें चिंता, तनाव, अवसाद, ईटिंग डिसआर्डर, पाेस्ट ट्राॅमाटिक डिसआर्डर, स्ट्रेस डिसऑर्डर आदि इसी तरह के लक्षण उभरते हैं. इसके अतिरिक्त खाने और सोने की आदतों में बदलाव, ऊर्जा में कमी, उदासी, निराशा, नशे की बढ़ोतरी, कन्फ्यूजन, गुस्सा मूड में बदलाव, बार-बार विचारों का दोहराव और साथ ही दैनिक कार्य करने में कमी का महसूस होने लगता है.

हर उम्र के लोग हैं प्रभावित
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी यह समस्या आज हर उम्र के लोगों में दिखाई देने लगी है. इस समय युवाओं में भी यह समस्या बढ़ गई है. आत्महत्या के मामले 18 वर्ष से 40 वर्ष के लोगों में ज्यादा है.

परिवार व समाज पर फोकस जरूरी
इस समय पारिवारिक नियंत्रण लगातार कम होता दिख रहा है. माता-पिता का बच्चों पर नियंत्रण नहीं है. पारिवारिक संस्कारों में कमी आने लगी है. माता-पिता का सही मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है. बच्चों से बातचीत कम हो गई है. यही पारिवारिक व सामाजिक ढांचा ही मानसिक तनाव को जन्म दे रहा है.

सफल होने की अंधी दौड़ भी शामिल
इस समय में समाज में आगे बढ़ने और सफल होने की जो मापदंड है, यह सिर्फ ऐन-केन-प्रकरेण आर्थिक सफलता तक सीमित रह गया है. प्रतिस्पर्धा गलाकाट हो चुकी है. इस कारण से युवा परिवार व समाज से कट जा रहे हैं. उनके जीवन में रचनात्मकता और आपसी लगाव कम होने लगा है. संवेदनशीलता का भी अभाव दिख रहा है. ऐसे में युवा घर, परिवार से दूर रहकर ऊंचाई के शिखर तक भले ही पहुंच जा रहे हैं, परंतु मन में कहीं न कहीं सूनापन कचोटने लगता है. यही सूनापानी, खालीपन व्यक्ति को अवसाद में पहुंचा देता है. इस तरह की स्थिति को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भूमिका है.

मानसिक रूप से स्वस्थ होने के बारे में सोचें
मानसिक रूप से स्वस्थ हो सकते हैं, बशर्ते कि हम उसके बारे में सोचें. खुद के अंदर विवेक पैदा करें. माता-पिता के साथ समय बिताए. परिश्रम करें. धैर्य बनाए रखें. आत्मविश्वास बनाए रखें. अपने दोस्तों से बातचीत करते रहें. कोशिश होनी चाहिए कि सोशल मीडिया का प्रयोग कम से कम किया जाए. अपने जीवन में व्यायाम व योग को शामिल करें. अपने पसंदीदा कार्यों को करें, इससे आप खुश रहेंगे.

बच्चों को शुरुआत से ही नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाएं. स्कूलाें में भी काउंसलिंग की जाए. अनिवार्य रूप से काउंसलिंग होनी चाहिए. बच्चों के सवालों का सहजता से जवाब दिया जाए. छोटी-छोटी समस्याओं का हल निकालें. इससे आप खुद को सहज महसूस करेंगे और तनाव भी कम होगा.

डा. रश्मि पंत . prasannachitt.com

डा. रश्मि पंत
पूर्व विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, एमबीपीजी कॉलेज
कुलसचिव, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी

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