भाग-1
कुमाउंनी कहावतों के अलग-अलग रंग हैं। इन रंगों में पहाड़ का जीवन समाया हुआ है। हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट कहते हैं, इन कहावतों में ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, नृतात्विक एवं स्थानीय तत्व पाए जाते हैं, जो अपने अतीत के समझने के द्वार भी हैं। कहावतें भाषिक वैशिष्ट्य को भी सुरक्षित रखती हैं, जो क्षेत्र के विशेष के भाषा विषयक अध्ययन में सहायक होती हैं। कुमाउंनी की ऐसी सैकड़ों कहावतें हैं, जिनकी प्रासंगिकता हर युग में बनी हुई है। प्रो. बिष्ट ने कुमाउनी कहावतें एवं मुहारे :विविध संदर्भ नाम से पुस्तक भी तैयार की है। पुस्तक के जरिये प्रो. बिष्ट की अनूठी सेवा है। उन्हीं की पुस्तक से आपके लिए चुनिंदा कुमाउंनी कहावतें…आप भी प्रसन्नचित्त डाट काम पर इन कहावतों का आनंद लें…
अत्ति बिराउ मुस न मरण : बहुत बिल्लियों में चूहे नहीं मरते। यानी कि सामूहिक जिम्मेदार में काम नहीं हो पाते हैं। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि जब बहुत अधिक लोग एक ही तरह के कार्य में उलझ जाते हैं तो वह काम पूरा नहीं हो पाता है।
आपण देलिक कुकुर बली : अपनी दहलीज में कुत्ता भी बलशाली होता है। अपने घर में कमजोर से कमजोर भी ताकतवार बन जाता है।
आपण मनिक गुनि बौरान : अपने मन से लंगूरी स्वयं को ब्राह्मणी समझती है। यानी कि अपने मुंह मिया मिट्टठू होना।
आपुं कारण गधा ज्वारण : अपने खातिर गधे की विनती करना। अपना काम निकालने के लिए किसी के सामने भी नतमस्तक हो जाना।
आफी नैक आफी पैक : स्वयं ही नायक और स्वयं ही महाबली। स्वयं ही सर्वेसर्वा।
अकलै उमरै भेट न हुनि : अक्ल व उम्र की भेंट नहीं होती है। युवावस्था में व्यावहारिक बुद्धि का अभाव होता है।
अघन्यारि दगड़ि पछन्यारि लै गै: आगे की गठरी के साथ पीछे की गठरी भी गिर गई। दोनों ओर से नुकसान होना।
अघिलकि तिति पछलकि मिठि भलि हुंछि : पहले कड़ंवा बोलना और बाद का मीठा परिणाम अच्छा होता है। यानी कि व्यवहार में स्पष्ट वादिता होनी चाहिए।