भाग-3
कुमाउंनी कहावतों की सीरीज में आपको पहाड़ के दर्शन होंगे। पहाड़ के खट्टे-मीठे रंग दिखेंगे। अपनापन महसूस होगा। अगर आप भी इन कहावतों मुहावरों को बोलते रहेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। जड़ों से जुड़ाव का आभास होगा। क्यों न प्रसन्नचित्त की इस अनूठी पहल का हिस्सा बनें। आपको इस तरह के मुहावरे व कहावतें प्रसन्नचित्त डाॅट कॉम पर लगातार पढ़ने को मिलेंगे।
इस सीरीज में में हम हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट की अंकित प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक कुमाउंनी कहावतें एवं मुहावरे : विविध संदर्भ में उल्लिखित चुनिंदा मुहावरे व कहावतें आपके लिए लाए हैं। ताकि दुनिया भर में फैले कुमाउंनी लोग इसका आनंद उठा सकें।
1- कुकुर घर कपास। कुत्ते के घर में कपास। गुणहीन व्यक्ति मूल्यवान वस्तु का महत्व नहीं समझता है।
2- कुमिल फुस्यरीण नैं त बुड़ीन जै कै नैं। पेठा यदि सफेद नहीं हो रहा है तो क्या वह बूढ़ा भी नहीं होता। इसका तात्पर्य यह है कि परिपक्वता उम्र से नहीं बल्कि अनुभवों से आती है।
3- कै-कै बेराक बैर। कह-कह करके बैर गाना। प्रतिभा का अभाव जिसमें हो, उसके लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है।
4- कौ कहड़ानै रै, पिन सुकनै गै। कौवा कांव-कांव करहता रहा, तिल की खानी सूखती रही। दूसरों की बातों पर ध्यान दिए बिना, अपना काम करते रहना।
5- क्वे चड़ घ्वाड़ में, क्वे चड़ पाख। कोई घोड़े में चढ़ा तो कई छत पर। ईश्याजनित प्रतिस्पर्धा।
6- खाणहैं च्याल, लड़न्हैं भतीज। खाने के लिए पुत्र और लड़ने के लिए भतीजा। भेदभावपूर्ण व्यवहार।
7- खाणि ठौर हगण। खाने वाली जगह मल त्याग। मूर्खतापूर्ण कार्य।
8- खीस है रीस भलि। खिसियाहट से ईष्र्या अच्छी। दया का पात्र बनना ठीक नहीं।
9- खुट में मुत्यक न्यैल। पांव में मूत्र विसर्जन से मिली गर्मी। संकुचित दृष्टिकोण।
10- गाजि गंवैं सक, बणी सयाण। गद्दी गंवाने के बाद बनिया सयाना बना। निष्प्रयोज्य कार्य।
क्रमश…
बहुत सुंदर