मानसिक स्वास्थ्य

क्या अगली महामारी बन सकती है मानसिक सेहत…? जानें क्यों…?

World Mental Health Day: 10 October

World Mental Health Day: 10 October : प्रसन्नचित्त डेस्क। तन ही नहीं, मन की सेहत का ख्याल रखना बेहद जरूरी है. लेकिन अक्सर लोग मन की सेहत की अनदेखी कर देते हैं. इसके चलते उन्हें गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ता है. इस समय तमाम ऐसी परिस्थितियां पैदी हो गई हैं या कहें कि जीवनशैली ही ऐसी हो गई कि मानसिक समस्या तेजी से बढ़ने लगी है. कोविड-19 महामारी के बाद मानसिक बीमारियों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो गई. देश भर के मनोरोग विशेषज्ञों ( Mental Health Experts) का मानना है कि जिस तरीके से मानसिक समस्या बढ़ रही है, इससे लगता है कि कहीं यह अगली महामारी न बन जाए. इसलिए समय रहते सचेत होने की जरूरत है. आइए 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day: 10 October) को लेकर इस विषय पर चर्चा करते हैं…ताकि मानसिक सेहत के प्रति जागरूकता बढ़े…

मानसिक सेहत पर बात करने में हिचकिचाहट क्यों?
मानसिक सेहत पर बात करने को लेकर लोग घबराते हैं. समय पर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के पास मदद को नहीं जाते हैं. इसमें आम लोग ही नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी होते हैं. देर होने की वजह से समस्या और भयावह होते जाती है. धीरे-धीरे इसका असर उनकी जिंदगी पर तो पड़ता ही है। साथ ही उकी पारिवारिक जिंदगी, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय व नौकरी पर भी पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि समय रहे मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चर्चा की जाए, जिससे की राहत मिल सके और चित्त प्रसन्न हो सके.

देश में विशेषज्ञों की स्थिति

विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के अनुसार देश में प्रति एक लाख की आबादी पर 0.3 मनोचिकित्सक, 0.3 नर्स, 0.07 मनोवैज्ञानिक हैं. जबकि मानक के अनुसार प्रति एक लाख पर तीन मनोचिकित्सक, तीन नर्स और तीन मनौवैज्ञानिक होने चाहिए.

थोड़ी राहत की बात यह भी
भारत सरकार ने इस वर्ष बजट में नेशनल टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू करने की घोषणा की थी. इसके जरिये कहीं पर भी आपको टेलीफोन, वीडियो कन्फ्रेंसिंग, इंटरनेट आदि के माध्यम से एक्सपर्ट से मेंटल हेल्थ को लेकर काउंसलिंग हो रही है, लेकिन अभी भी यह बहुत अधिक प्रभावी नहीं हो सका है.

आंकड़ें पर भी नजर दौड़ाइए
एम्स नई ( AIMS Delhi) दिल्ली के अनुसार जहां 10 वर्ष पहले ओपीडी में 100से 120 मरीज पहुंचते थे, लेकिन अब यह संख्या 250 से अधिक हो चुकी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के एक डेटा के मुताबिक पूरी दुनिया में 13 प्रतिशत लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं,यह आंकड़ा करीब एक बिलियन है.
इसमें से 82 प्रतिशत लोग मिडिल या कम आय वाले देशों में हैं, जहां मानसिक बीमारी को लेकर स्वास्थ्य सेवाएं बहुत कम हैं या बेकार हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं को डिप्रेशन(Depression) और एंग्जाइटी (Anxiety) है वहीं पुरुषों में मेंटल डिसऑर्डर के केस ज्यादा आते हैं, बच्चों में डवलपमेंट डिसऑर्डर सबसे कॉमन मानसिक बीमारी है.
मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारी इकॉनोमी पर भी बुरा असर डाल रही है, 2.5 ट्रिलियन डॉलर मानसिक बीमारियों पर खर्च होता है जिसमें से करीब 1 ट्रिलियन डॉलर डिप्रेशन और एंग्जाइटी पर खर्च हो गए. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक 2030 तक मानसिक बीमारियों पर कम से कम 6 ट्रिलियन डॉलर खर्च होगा.

नोट- यह लेख विषय विशेषज्ञों, डाक्टरों से बातचीत पर आधारित है और यह विशुद्ध रूप से आपकी जागरूकता बढ़ाने के लिए है. संबंधित बीमारी के उपचार के लिए आपको अपने डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए.

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