फ्रांस की मनावैज्ञानिक ने कहा, उत्तराखंड में डंगरिये भी बांटते हैं दर्द व खुशी
Psychology: Dr. Meena Kharkwal
Psychology: प्रसन्नचित्त डेस्क, हल्द्वानी। उत्तराखंड में डंगरिये, देवता व जागर जैसी वर्षों से प्रचलित परंपरा के भी मनोवैज्ञानिक पक्ष हैं। फ्रांस की वरिष्ठ नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉ. मीना खर्कवाल ( Clinical Psychologist Dr, Meena Kharkwal) ने अपने शोध में पाया है कि कुमाऊं में देवता न केवल नाचते हैं, बल्कि लोगों के दर्द व खुशी को भी बांटते हैं। उन्होंने मनाेवैज्ञानिक व परंपरागत शैली की उपचार पद्धति पर और अधिक कार्य किए जाने पर जोर दिया।
डा. खर्कवाल मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की रहने वाली है. एक मार्च को वह उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी( Uttrakhand Open University Haldwani) पहुंची थी. उन्होंने Mental Health in 21st century and Comparative practices of Ritual Healing in Uttarakhand and Europe पर व्याख्यान दिया. इसमें मुक्त विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग से लेकर कई अन्य विभागों के शिक्षक व शोधार्थी शामिल हुए. डा. खर्कवाल यूरोप के कई देशों में भी काम कर चुकी हैं. यह पहली भारतीय मनोवैज्ञानिक हैं, जिन्हें फ्रांस सरकार ने अपने देश में कार्य करने की अनुमति दी है. कहती हैं, पुनर्जागरण के दौरान यूरोप मध्य युग से आधुनिकता तक महान संक्रमण से गुजरा. कुमाऊं( Kumoun) के डंगरियों की तरह यूरोप में आनुष्ठानिक उपचार संस्था अब नहीं हैं. उन्होंने परम्परागत उपचार पद्यति पर यूरोप व उत्तराखंड की तुलना की. परम्परागत उपचार पद्यति के मनोविज्ञान पक्ष के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भी दी.
बढ़ता नशा घटते पुस्तकालयों पर जताई चिंता
डा. खर्कवाल ने देवभूमि उत्तराखंड में नशे की बढती प्रवृत्ति व पुस्तकालयों की घटती संख्या पर चिंता जताई. साथ ही समाज में व्याप्त अंधविश्वाश व असमानता को दूर करने के लिए शिक्षकों व शोधार्थियों से वैज्ञानिक शोध व अंतरराष्ट्रीय शोधों का अध्ययन करने की सलाह दी. इसके लिए पुस्तकें पढ़ने पर जोर दिया.
मानसिक स्वास्थ्य Mental Health)के लिए सभी से स्व जागरूकता व आत्म सम्मान से जीने के लिए प्रेरित किया. साथ ही बताया कि किस तरह से मनोवैज्ञानिक व परम्परागत शैली की उपचार पद्यति को एक साथ लेकर कार्य किया जा सकता है जो समाज के लिए बहुत अधिक उपयोगी साबित हो सकता है.
डा. मीना ने महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति विशेष रूप से जागरुक होने की बात कही. इसके लिए उन्होंने अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के उपाय भी सुझाए. इसके लिए, ध्यान, प्राणायाम, शारीरिक गतिविधि व संतुलित भोजन करने को कहा.
मनोवैज्ञानिक ने सबसे अच्छी बात यह कही कि मनोवैज्ञानिक के रूप में हमारी भूमिका सुनने की है न कि न्याय करने की. किसी की बात को ध्यान पूर्वक सुनने मात्र से ही हम चिंता, कुंठा व अवसाद की स्थिति को कम कर सकते हैं.
विश्वविद्यालय की कुलसचिव प्रो. रश्मि पंत जो मनोवैज्ञानिक भी हैं, उन्होंने डॉ. मीना के व्याख्यान को प्रभावशाली बताते हुए कहा कि आज भी हमारे समाज में मनोविज्ञान एवं मानसिक व्याधियों को लेकर जागरूकता की आवश्यकता है. समाज विज्ञान विद्या शाखा के निदेशक प्रो. गिरिजा पांडे ने डॉ. मीना का धन्यवाद करते हुए साथ मिलकर समाज में जागरूकता लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई. कार्यक्रम का संचालन मनोविज्ञान विभाग की समन्वयक डॉ. सीता ने किया। कार्यक्रम में डॉ. नीरजा सिंह, डाॅ. एमएम जोशी, डॉ. भूपेन, डॉ. राजेंद्र कैडा, डॉ. विनीता पंत, डॉ. घनश्याम, डॉ. भाग्यश्री, डॉ. ललित, डॉ. लता, डॉ. दीपान्कुर आदि शामिल रहे।
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