दीपावली केवल त्योहार भर नहीं हैं. घर की सफाई, पटाखा जलाना, दीये जलाना और झालरों से घर को सजाने तक सीमित नहीं है. इससे भी कहीं आगे की बात है दीपों का पर्व मनाना. भले ही इस पर्व के तमाम आध्यात्मिक मायने हों, लेकिन यह त्योहार मन की सफाई का भी है. जब आप खुलकर खुशी से झूम उठते हैं. पटाखों के जरिये आप अपने अंदर की दमित भावनाअों का विस्फोट कर डालते हैं. अमावस की घुप्प अंधेरे की रात में दीये से न केवल आसपास रोशनी करते हैं, बल्कि नकारात्मक विचारों से दूर सकारात्मक विचारों का प्रकाश भरते हैं. वर्तमान पल में जीते हुए जीवन की खुशियों का आनंद उठाते हैं. आइए जानते हैं मन में खुशियों के दीप जलाने के मायने…
अप्प दीपो भव:
भगवान गौतम बुद्ध ने कहा है, अप्प दीपो भव: यानी कि अपना दीपक स्वयं बनो. इस बात को विस्तार से व्याख्या करते हुए आेशो कहते हैं, आखिर दीया बनाना हो, तो विधि भी तो होनी चाहिए! बाती बनानी आनी चाहिए. तेल भरना आना चाहिए. फिर दीया ऐसा होना चाहिए कि तेल बह न जाए. फिर दीए की सम्हाल भी करनी होती है. नहीं तो कभी बाती तेल में ही गिर जाएगी और दीया बुझ जाएगा. वह साज-सम्हाल भी आनी चाहिए, विधि भी आनी चाहिए. फिर चकमक पत्थर भी खोजने चाहिए. फिर आग पैदा करने की कला भी होनी चाहिए. आखिर कहने का तात्पर्य यह है कि आप खुद से मिलें. अंतर के अालोक को सहजें. खुद को सहज कर दें और महसूस करें कि अपने अंदर प्रेम का दिया जलने लगा है.
अपनों के साथ रहें
दीपावली अपनों के साथ मनाने का मौका मिल जाए तो बात ही क्या- मजा दोगुना होना तय है. कई लोग घर पर होने के बावजूद अपनों के साथ नहीं होते हैं. उनका मन कहीं और ही रहता है. इसलिए जरूरी है कि आप तन से ही नहीं, बल्कि मन से भी अपनों के साथ दीपावली का त्योहार मनाएं. अगर आप स्वजनों के साथ दीपावली मनाने में पूरी तरह इनवॉल्व हो जाएंगे तो न केवल आप सुकून महसूस करेंगे, बल्कि स्वजनों को भी बहुत अच्छा लगेगा.
अपनों से बात करें
कई बार आप चाहते हुए भी अपनों के साथ दीपावली नहीं मना सकते हैं. इसलिए कि नौकरी या किसी अन्य काम के चलते दूर होते हैं. तब भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं. मोबाइल व इंटरनेट तकनीक का सदुपयोग करें. बधाई देने के लिए फोन करें. वीडियो काॅल के जरिये बात करें. इससे आप भी प्रसन्न रहेंगे और जो दूर हैं, उनका चित्त भी प्रसन्न हो जाएगा.
अपनों के लिए खुद लिखें मैसेज
एक समय था, जब चिट्टी का जमाना था. मनोभावों को व्यक्त करने का शानदार तरीका, तब हम अपने मन की बात को शब्दों में उतारते और मनोभावों को अभिव्यक्त कर लेते थे. वह दौर ही कुछ और था. शब्दों के दीप भाव की बाती में जला करते थे. मन से लिखे ये शब्द उम्मीदों के दीप बन मायूसी की छटा को दूर कर दिया करते थे, लेकिन अब हम दिल की बात लिखते ही कहां है? अगर अपनों को संदेश देना भी होता है तो या तो किसी और मैसेज फाॅरवर्ड कर देते हैं या फिर इमोजी से काम चला लेते हैं. इस संदेश में वैसी बात कहां, जो चिट्टी में लिखे शब्दों जादू सा असर करते थे.
अगर कभी आप अपने भावों से पगे शब्दों को लिखते होंगे तो खुद का मन कितना प्रसन्न हो जाता होगा. हां, अगर दिल से निकले ये शब्द जब कोई अपना पढ़ता होगा तो वह भी भीतर से खुशी महसूस करता होगा.
तो क्यों न इस दीपावली में आप अपनों के लिए खुद मैसेज लिखें.
मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि दिल की बात जब बाहर निकलती है तो व्यक्ति खुद को हल्का महसूस करने लगता है. सिर का बोझ हल्का होने लगता है. इसका जरिया जर्नलिंग यानी कि कुछ न कुछ लिखते रहना है. इसके लिए कई मनोवैज्ञानिक थॉट डायरी मेंटेने करने की भी सलाह देते हैं.