दोस्ती मुबारक हो प्यारे…लेकिन वर्चुअल नहीं
Happy Friendship Day
क्या किसी वर्चुअल दोस्त (Virtual Friend) के कंधे पर सिर रखकर राेया जा सकता है? वर्चुअल दोस्ती में हम सच कैसे मान लें कि यह फेक नहीं हो सकता है, झूठी जानकारी नहीं दे रहा होगा। पहले सवाल का जवाब एकदम स्पष्ट है, नहीं। दूसरे सवाल का जवाब है, कुछ नहीं कह सकते। पूर्ण रूप से सहमति भी नहीं और न ही असहमति। वैसे भी आए दिन अखबारों की सुर्खियां वर्चुअल दुनिया में धोखा खाने वाले लोगों की ही रहती हैं। साइबर बुलिंग, ठगी, ब्लैकमेलिंग जैसे कई तरह के अपराध काॅमन हो गए हैं। हालांकि, जागरूकता बढ़ी है लेकिन जिस हद तक सोशल मीडिया के प्रति आसक्ति बढ़ गई है, ऐसे में इन अपराधों से बचना मुश्किल हो गया है, खासकर युवा पीढ़ी के लिए।
मित्रता को एक परिभाषा में बांधना संभव नहीं। वैसे भी मित्रता बंधन नहीं, उन्मुक्तता प्रतीत होती है। जहां स्वच्छंद होकर भावों, विचारों का आदान-प्रदान होता है। सुख-दुख, हताश-निराश, सफलता-असफलता में मित्र साथ दिखते हैं। जहां व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं नहीं दिखतीं। दिखता है तो सिर्फ एक-दूसरे के साथ होने का एहसास। कुछ तेरा मेरे पास और कुछ मेरा तेरे पास वाली फिलिंग। जहां आप शांत होते हैं, खुशी से उछल पड़ते हैं। न जाने कितनी मानसिक बीमारियां से दूर हो जाते हैं।
ध्यान रहे कि रील वाली दुनिया में रियल एहसास के लिए जापान, कोरिया, अमेरिका में प्रचलित डिनर फ्रेंड जैसी स्थिति न आने पाए। बदलते हालातों से लग रहा है कि भारत के बड़े शहरों के साथ ही छोटे शहरों में भी ऐसी ही नौबत आ सकती है। क्योंकि अकेलेपन की बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा घोषित किया है।
दोस्त तो दोस्त ही होता है, पास हो या दूर, कुछ बातें मन की हो ही जाती हैं। मेरे भी कुछ दोस्त हैं, मिलते ही हम हर पल दोस्ती को दिल से जीते हैं।
मित्रता दिवस की बधाई (Friendship Day)
गणेश जोशी