Deepawali Yepan in Kumoun : प्रसन्न चित्त डेस्क । लाल रंग से पुती घर की देहरी व दीवारों पर सफेद रेखाएं महज रेखाएं भर नहीं हैं, यह उत्तराखंड (Uttrakhand) के लोकजीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इन रेखाओं में आस्था है और विश्वास भी. ऐपण नाम से प्रचलित यह परंपरा दीपावली के त्योहार में और समृद्ध हो जाती है. कोई घर ऐसा नहीं, जहां ऐपण नहीं दिखते.
कुमाऊं में लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा ऐपण की अनूठी परंपरा सदियों से प्रचलित है. इस परंपरा का निर्वहन केवल दीपोत्सव में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक उत्सवों, पर्वोत्सवों, व्रतोत्सवों व संस्कारोत्सवों में होता आ रहा है.
दीपावली में ऐपण तैयार करने का तरीका
दीपावली (Deepawali) के दिन घर पर बाहर सजी तुलसी दल से लेकर भीतर मंदिर तक छोटे-छोटे गोल आकार में लाल मिट्टी की पुताई की जाती है. इन गोलों में भीगे हुए चावल को सिलबट्टे में पीसकर तैयार किए बिस्वार से मां लक्ष्मी के पदचिन्ह बनाए जाते हैं. देहरी में और घर के दीवारों के निचले हिस्से में भी पांच से लेकर सात त्रिभुजाकार रेखाएं डाली जाती हैं. लेकिन वर्तमान में शहरीकरण के चलते ऐपण बनाने का तरीका बदल गया है. अब बाजार में बिकने वाले पेंट और स्टीकर ने इसका रूप ले लिया है. बहुत कम घरों में अब परंपरागत तरीके से डाले गए ऐपण नजर आते हैं.
ऐपण पेंटिंग का बनने लगा बड़ा बाजार
अब केवल घर पर ही ऐपण नहीं बनाए जाते हैं, बल्कि तमाम तरह की पेंटिग्स में ऐपण (Yepan paintings) का इस्तेमाल होने लगा है. यहां तक कि आमंत्रण पत्रों से लेकर साड़ी में भी ऐपण की डिजाइन नजर आने लगी है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में आए थे, तब भी उन्हें ऐपण की पेंटिंग की भेंट की गई थी.
और भी उत्सवों में ऐपण की अनूठी परंपरा
विवाह के समय दूल्हा जब दुल्हन के घर बारात लेकर पहुंचता है. तब घर के बाहर विवाह से पहले होने वाले धूर्लघ्य करने की परंपरा है., जो आज भी प्रचलित है. जिस जगह पर धूर्लघ्य की रस्में निभाई जाती हैं. उस जगह पर सजाई गई चौकी ऐपण से सुसज्जित रहती है.
प्रतीकों में ऐपण
कुमाऊं में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, मांगलिक कार्यों में भी ऐपण डालने की विशिष्ट पंरपरा रही है. यह ऐपण त्रिकोण, रेखा वर्ग, बिंदु, त्रिभुज, वृतचक्र, स्वस्तिक, कमल आदि प्रतीकों पर आधारित रहते हैं. इन प्रतीकों को अंगुलियों, मुट्टी व हथेली से बनाया जाता है. कई जगह शंख, चक्र, सूर्य, मत्स्य, गज, वृक्ष, लता, त्रिशूल आदि का भी अंकन करने की परंपरा रही है. इसके लिए किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं रहा है. महिलाएं ही कन्याओं को इसका प्रशिक्षण दिया करती थी.
प्रसिद्ध भाषाविद रहे स्वर्गीय डीडी शर्मा (Pro DD Sharma) अपनी पुस्तक में उल्लेख करते हैं, ससुराल जाकर भी वधू को ऐपण कला का प्रदर्शन करना होता था. इससे उसकी कलात्मक अभिरुचि का आकलन किया जाता रहा है. कुछ हद तक गांवों में यह परंपरा अभी भी कायम है, लेकिन शहरों में अब यह परंपरा कम हो गई.
कुमाऊं विश्वविद्यालय में प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया अपनी पुस्तक में इसे संस्कारी चित्रकला का नाम देते हैं। वह उल्लेख करते हैं, कुमाऊंनी चित्रकला ऐपण को अल्पना व म्वाल लेखन भी कहा जाता रहा है.