मानसिक स्वास्थ्य

कानून के दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य, बिना जागरूकता के कुछ भी अधिकार नहीं मिलेंगे

World Mental Health Day: 10 October

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कानून बने हैं. सरकार की तमाम योजनाएं भी बनती हैं, लेकिन धरातल पर उनका पालन नहीं होता. जिन सुविधाओं को देने का वादा किया जाता है, वह भी नहीं मिलती हैं. इसके लिए कभी बजट( BUDGET) की कमी तो कभी मेनपावर की कमी बनती रहती है. खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है. आइए जानते हैं कानून की नजर में मानसिक स्वास्थ्य क्या है?

भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912 में बना था. इस अधिनियम में मानसिक रूप से बीमार रोगियों की तुलना पागलों से की जाती थी और इन्हें समाज से दूर रखने का प्रावधान था. इस अधिनियम के चलते लंबे समय तक मानसिक रोगी उपेक्षित रहे. उन्हें उचित इलाज नहीं मिल सका और प्यार व देखभाल से भी वंचित हो गए.

समाज में मानसिक रोगियों को लेकर मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम, 2017(Mental Health Care Act 2017) बना. इसमें मानसिक रोगियों की गरिमा और स्वायत्ता को प्राथमिकता दी गई है. ऐसे राेगियों के साथ सामान्य लोगों की तरह व्यवहार करना है. साथ ही इस अधिनियम ने मानसिक स्वास्थ्य तक पहुंच बनाने का अधिकार की भी मान्यता दी है. इसका तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति को सरकार की ओर से चलाई जा रही या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) तक पहुंच बनाने का अधिकार है. इसमें किसी तरह के लिंग, धर्म, जाति, वर्ग या राजनीतिक मान्यता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना है.

कर्म खर्च में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करानी है. सरकार को भी यह भी सुनिश्चित करना है कि अगर जिले में सरकारी स्तर पर मानसिक रोगी के इलाज की सुविधा नहीं है तो निजी अस्प्तालों में उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जाए. लेकिन अभी तक यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है.

जानें, यह भी हैं अधिकार

मनोनीत प्रतिनिधियों की नियुक्ति : अगर मानसिक बीमारी के कारण रोगी स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने में असमर्थ है तो उसके द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि उसके उपचार के बारे में निर्णय लेंगे.

अग्रिम निर्देश : जो लोगों को भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और किसी विशेष उपचार को चुनने, अस्वीकार करने का अधिकार.

यह है वित्तीय स्थिति

वित्त वर्ष 2022-23 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कुल 86200.45 करोड़ रुपये का बजट था. यह केंद्र सरकार के वित्तीय परिव्यय का केवल दो प्रतिशत ही है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य के लिए बजट का अनुमान स्वास्थ्य बजट का 0.7 प्रतिशत है. यानी कि 1035.09 करोड़ रुपये है.

वर्ष 2019 के अध्ययन के अनुसार, इस कानून को लागू करने के लिए सरकार को वार्षिक अनुमानित लागत 94073 करोड़ रुपये है. स्वास्थ्य पेशेवरों की स्थिति वर्तमान में भारत में प्रति 10 लाख पर 3.5 मनोचिकित्सक हैं. जबकि कॉमनवेल्थ मानदंड के अनुसार प्रति 10 लाख लोगों पर 56 मनोचिकित्सक होने चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की वकील मृणाल कंवर ने अमर उजाला में प्रकाशित एक आलेख में सुझाव दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सीमित प्रशिक्षण सुविधाएं भविष्य के लिए निराशाजनक तस्वीर पेश करती है. सरकार को पूरे देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच का विस्तार करने के लिए निजी चिकित्सकों को प्रोत्साहित करने और पीपीपी परियोजनाओं द्वारा साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है. सरकार के अलावा समाज को भी मनोरोग से जुडे कलंक को कम करने और मानसिक बीमारियों के उपचार के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश करनी चाहिए.

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