‘दुनिया के इतिहास में इतना संक्षिप्त वैवाहिक अनुष्ठान कहीं न हुआ होगा’
Ganesh Joshi-Book Review
Book Review: पुस्तक समीक्षा – जितनी मिट्टी उतना सोना
गणेश जोशी
यात्रा करने का मतलब इतना भर नहीं है कि फोटो खिंचवाओ, वीडियो बनाओ और लौट आओ। इतना भी नहीं कि कुछ स्वादिष्ट सा भोजन कर लो और ज्यादा से ज्यादा जगह निपटा लो. इसके बाद सोशल मीडिया में फोटो अपलोड कर लाइक और कमेंट्स का इंतजार करो। यात्रा इससे भी कहीं आगे की चीज है, जहां आप केवल शरीर से नहीं पहुंचते हैं। मकसद, घूमने भर तक का भी नहीं होता, बल्कि स्वयं से साक्षात्कार का होता है। यात्रा वाली जगह को आप केवल नग्न आंखों से नहीं देखते हैं। बल्कि भरपूर दर्शन भी करते हैं. दर्शन (Philosophy) यानी की आप अपनी मन की आंखों से गहन तरीके से अनुभूति करते हैं। आत्मा (Soul) अनुसंधानियों के आत्मज्ञान से लेकर दुनिया की खोज की देन भी यात्राएं ही तो हैं, जिसे महान विद्वानों ने अपने-अपने शब्दों से अनुभव बयां किए हैं। इसमें एक प्रसिद्ध नाम है घुमक्कड़ी लेखक राहुल सांकृत्यायन का, जिन्होंने लिखा है, ‘घुमक्कड़ी मानव मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ खुद के जीवन क्षितिज को विस्तार देती है.’
बारामासा (Baramasa) में राहुल कोटियाल जब हिमालय के घुमक्कड़ी पद्मश्री प्राप्त महान इतिहासकार व लेखक प्रो. शेखर पाठक (Historian and Travellor Professor Shekher Pathak) से अपनी हिमालय की यात्रा के बारे में चर्चा कर रहे होते हैं तो तब वह पहाड़ पर कुछ पल ठिठक कर कहते हैं, जब वह आराकोट-अस्कोट की यात्रा कर लौटे थे तो एक फिलोसाफिकल कोट बहुत चर्चित हुआ था, ‘यात्राएं हमें इस अर्थ में बड़ा करती हैं कि हमें हमारे छोटे होने का भान कराती हैं.’
अब आ जाते हैं असली विषय पर. मैं बात कर रहा हूं पुस्तक ‘जितनी मिट्टी उतना सोना’ की. इसके लेखक हैं अशोक पांडे (Jitani mitti utna sona written by Ashok pande). जिन्होंने लातीन अमेरिका, यूरोप के अतिरिक्त सुदूर हिमालयी क्षेत्रों की सीमांत घाटियों की लंबी यात्राएं की हैं. यह पुस्तक भी उत्तराखंड (Uttrakhand) के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के चीन सीमा पर सटे धारचूला की यात्रा पर आधारित है, जिसमें तीन अत्यंत खूबसूरत घाटियां व्यास, चौंदास व दारमा का शानदार वर्णन है.
जहां ओम पर्वत (Om Parvat), आदि कैलास (Aadi Kailas) है. यह स्थल स्वयं में अद्भुत सौंदर्य समेटे हुए है. नदियां, पहाड़, हिमालय की ऊंची बर्फीली चट्टानें, बुग्याल. यहां तक कि इन घाटियों में सदियों से निवास करने वाली रं समाज की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा. जिसे देखना-सुनना और जानना अपने आप में एक नई अनुभूति है.
अशोक पांडे जिन्हें मैं प्यार और सम्मान से अशोक दा कहता हूं, जिन्होंने अपनी ऑस्ट्रियाई साथी सबीने के संग यह यात्रा की है. इन घाटियों में उनकी एक बार की नहीं बल्कि कई बार की यात्राएं हैं। इस पुस्तक में अशोक दा ने इन तीन घाटियों में हर उस चीज का वर्णन किया है, जो वह देखते हैं और जो देखना चाहते हैं. या फिर जो वह महसूस करते हैं या फिर करना चाहते हैं.
इस यात्रा ( Travelouge) में एक और चीज महत्वपूर्ण थी, जो मुझ जैसे पाठक के मन में कौंधती है, जिसका वर्णन मुझे नहीं मिला वह है सबीने के साथ उनकी अंतरंगता. इन भावों को वह यात्रा के साथ जोड़ना उचित नहीं समझते हैं. खैर, यह लेखक का अपना व्यक्तिगत मामला है. मेरे मन में प्रश्न उठा, तो मैंने कह दिया. हालांकि व यात्रा के दौरान ‘मेरा गांव बूदी और सनम काकू’ वाले चैप्टर में एक जगह लिखते हैं, सनक काकू ने उनसे कहा, यही कि आप दोनों शादी करने को राजी हैं. यही नहीं सनम काकू अपनी जेब से एक छोटी माला निकालकर सबीने को देते हुए कहते हैं, यह मेरी मां की निशानी है. आज से तुम्हारी हुई. सबीने संकोच करती है, लेकिन जबरन उसे थमाते हुए बोले, आप लोग मानो चाहे न मानो आज से मैंने तुम दोनों को अपना बहू-बेटा मान लिया. मतलब सिरी-नमस्या. तब अशोक दा आगे लिखते हैं, संभवत: दुनिया के इतिहास में इतना संक्षिप्त वैवाहिक अनुष्ठान कहीं न हुआ होगा.
जितनी मिट्टी उतना सोना…जैसा की पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि जितनी बार भी यानी इस घाटी को जितना जानो, उतना ही मजा आएगा. पुस्तक के अंतिम अध्याय की अंतिम पंक्ति में लेखक स्थानीय निवासी नबियाल के हवाला देते हुए कहते हैं, ‘हमारे यहां शिकारियों में एक कहावत चलती है-खरगोश का पीछा करोगे तो बारहसिंघा निकलेगा.’ मेरे कहने का मतलब है कि पुस्तक पढ़ने का आनंद भी कुछ ऐसा ही है. जितनी गहराई से पुस्तक में डूबते हैं, लगता है कि खुद भी लेखक के संग उन घाटियों की यात्रा पर हैं.
अशोक दा की लेखन शैली का कोई जवाब नहीं. हर छोटी बात को इस सलीके से कह देते हैं कि पढ़ने में सहजता महसूस होती है. ट्रैकिंग को जानना, परिवेश को समझना और स्थानीय लोगों की संस्कृति को समझाने का तरीका अनूठा है. यहां तक कि जिस तरीके से लेखक स्थानीय लोगों के साथ प्रकृति के सौंदर्य को अपने अंदर महसूस करते हैं, वही एहसास पाठक के मन में भी होने लगता है.
जब लेखक रं समाज के मिथकों को हू-ब-हू पेश करते हैं तो उन्हें पढ़ने की उत्सकुता और बढ़ जाती है. क्योंकि ऐसी आधुनिक समय में मिथकों से जुड़ी अजूबी किस्से, कहानियों को पढ़ने का मजा कुछ और ही है. कलवा ल्वार की कथा की तो बात ही कुछ और है. लेखक हर गांवों के देवी-देवताओं के साथ उनकी शक्तियों और उनसे जुड़ी स्थानीय किस्सों को बताना नहीं भूलते हैं.
पुस्तक के जरिये एक बात ने मुझे बहुत प्रेरित किया. मुझे लगता है कि यह बात और लोगों को भी पसंद आएगी. रं समाज की समृद्ध संस्कृति को डिगाने की कोशिश हुई, लेकिन वह चट्टान की तरह डिगे रहे, टिके रहे. शौकाओं की सस्कृति मतांतरण पर हमेशा भारी रही. होना भी यही चाहिए. दुनिया में आज जहां भी इंसानियत और मानवीयता बची है, इसकी वजह उनकी अपनी संस्कृति है. जड़ों से जुड़ाव है. देश-दुनिया में फैल चुके तीन देशों से जुड़े रं समाज में यह आज भी शिद्दत से दिखाई देता है.
इस सब के बावजूद बदलते दौर की तस्वीर को भी अशोक दा ने देखा और लिखा है. जैसे गांवों के होम स्टे में बदलना, खूबसूरत नक्काशी वाले घरों में ताले लटके होना, बुजुर्गों की चिंता आदि.
एक बात और दिखती है मुझे वहां. अशोक दा ने भी यात्रा वृतांत में गांव में रहने वाले जानकार लोगों से भी बात की है, जिन्हें प्राचीन पंरपराओं का ज्ञान और भान भी है. मैं देखता हूं व्यास घाटी में ऋषि व्यास की चर्चा तो बहुत हाेती है, लेकिन वेद-पुराण, उपनिषद आदि के बारे में कुछ भी नहीं लिखा-पढ़ा गया और न सुना गया है. महाभारत के पात्रों के नाम से गांवों व चोटियों का नाम है. इससे जुड़ी कई जनश्रृतियां हैं, लेकिन बाकी महाभारत का उल्लेख उनके किस्सों में नहीं दिखता. खैर, इसे जानने-समझने के लिए और शोध की जरूरत हो. वैसे देखा जाए तो इन घाटियों के लोगाें के मान्यताओं में अपने अलग ही देवी-देवता और राक्षस हैं.
समग्र रूप से देखें तो पुस्तक पठनीय है. कंटेंट बेहतरीन है. पुस्तक का आवरण फोटो भी आकर्षित करती है। यह तस्वीर धीराज सिंह गर्ब्याल की है, जो इस समय नैनीताल जिले के डीएम हैं. स्थानीय परंपरा, संस्कृति, उत्पाद आदि के जरिये पर्यटन को बढ़ावा देने को लेकर उनकी खूब तारीफ हो रही है. यह पुस्तक पाठकों के बीच चर्चित है. इसे हिंदी युग्म ने प्रकाशित किया है. पहला संस्करण नवंबर, 2022 को जारी हुआ. पुस्तक की कीमत 249 रुपये है. इसे एमेजन से भी खरीदा जा सकता है.
दैनिक जागरण के चीफ रिपोर्टर गणेश जोशी की फेसबुक वाल से साभार।
वरिष्ठ पत्रकार गणेश जोशी सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से कलम चलाते हैं. दैनिक जागरण में तीखी नजर नाम से साप्ताहिक कॉलम प्रकाशित होता है. सोशल मीडिया में सीधा सवाल सीरीज में अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों से लेकर मंत्रियों व मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा करते हैं. गणेश जी का स्वास्थ्य व मनोविज्ञान विषय पर सबसे अधिक फोकस रहता है.