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इस चौमास में लिजिए हिरदा की कुमाउंनी कविता का भरपूर आनंद…

Uttrakhand: Poet Heera Singh Rana

अभी आप चौमास का आनंद ले रहे हैं. यही मौसम तो है जब हर जगह हरियाली ही हरियाली छा जाती है. मन को सुकून मिलने लगता है. बारिश की बूंदें शरीर पर पड़ते ही अलग ही आनंद की अनुभूति होने लगती है. बरसात के इसी मौसम को कुमाउंनी में चौमास कहते हैं. इसी चौमास पर उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि-गिदार हीरा सिंह राणा ( Famous Kumouni Poet Heera Singh Rana) की बहुत ही सुंदर कविता है. जब हम एकाग्र होकर कुमाउंनी कविता को पढ़ने लगते हैं तो पूरा पहाड़ का चौमास हमारे भीतर समाने लगता है. शब्दों को पिरोने और पहाड़ी विंबों-प्रतीकों के प्रयोग में हिरदा का कोई जवाब नहीं.

हिरदा को करीब से जानने-समझने और पहचानने वाले वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार व लोक मर्मज्ञ चारु तिवारी ( Charu Tiwai) ने उनकी रचनाओं पर समग्र संकलन प्रकाशित किया है. जिसका नाम है लस्का कमर बांदा. वर्ष 2022 में हिमांतर प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक की कीमत 550 रुपये है. पहाड़ को जानने की कोशिश करने वालों के लिए यह अनमोल खजाना है.

प्रसन्नचित्त डाट काम पर अब लीजिए हिरदा (Hirda)की चौमास कविता का आनंद …

चौमास

एैगो हो! ऋतु रड़िली चौमासै की,
अरखा-गरखा-बरखा झुलिगे।
हरिया-भरियां हैगे स्यारी-स्यारी,
ठाड़री-ठाड़री, लगुली-फुलिगे।।


            काई-बाधई उरि एैगे उंच गगन,
            हैंसनै-बुलानै, गाजनैं-भाजनैं।
            मथ-मथैं रिटिंछ, एसि देखीं जसि,
            लमेड़ी कमवै चौफई खुलिगे।।  

द्यौ लागौ झुण-मुण दुड़ बुड़ी चालमा,
जसै खुटि कबी टेंकूं अपण ख्यालमा।
कै द्यां गदक पड़, कै द्यां पड़नी झड़,
कैं बघा झुर होल चट फिरी थमीगे।।

         खगन-बगन, घन्ना-घौप गगन,
         जसै क्वे बिरूठौ हौंच निर्दयी मन।
         सुसाट-भुभाट-गुगाट गध्यरां,
         बाजनी मुरुली शोरमा तेईगे।।

झम पड़ी रात चमपारि चाल चमकी,
एल्लै यां-एल्लै वां, एल्लै यां-एल्लै वां।
नौली ब्योलीं जसै खितपारी हैंसींच,
हैंसी बै शर्मैं-शर्मैं लुकिगे।।

बट्यौ गे छिरौली-छिरौली रौलिमा,
रौलि गे गधेरी, गधेरी गाड़मा।
गाड़ गे इतु टाड़ पछिल निचाय,
धड़ दगड़ियौं कैं सबुकैं भुलिगे।।


रड़िली- रंगीली, ठाड़री-ठाड़री लगुली- बेल, चौफई-कंबल की तरह, गदक पड़- मूसलाधार, झड़- लगातार बारिश, थमीगे- थमा, घौप गगन- घोर छटा छाई, सुसाट-भुभाट- सायं-सायं की आवाज, शोरमा- बांसुरी के गुंजित स्वर, खितपारी- खिलखिलाकर हंसना।

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