आचार्य विनोबा भावे कहते हैं, ईश्वर की हम पर अपार कृपा है कि हममें वह कुछ न कुछ कमी रख देता हैं। ईश्वर चाहते हैं कि यह कमी जानकर हम जाग्रत हों। विनोबा जी यह कथन हमें यू ही समझ नहीं आएगा। ऐसा इसलिए कि हम गहराई से सोचते ही नहीं हैं।
यह कमी तभी दूर होगी, जब ज्ञान की प्राप्ति होगी। ज्ञान कैसे मिलेगाए इसके लिए तभी वह कहते हैं कि समाधियुक्त गंभीर अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं मिलता है। परम ज्ञान पाने के लिए हमें समाधि का अर्थ समझना ही होगा। अध्ययन से प्रज्ञा, बुद्धि, स्वतन्त्रता और प्रतिभा का विकास होता है। प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई.नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पनाए नया उत्साह, नई खोज, नई स्फूर्ति ये सब प्रतिभा के लक्षण हैं।
दुर्भाग्य है कि समाज में ऐसे लोग भी हैं, जो अल्प ज्ञान को ही सम्पूर्ण ज्ञान समझ बैठते हैं। अपने बारे में ही पूरी समझ नहीं होती। अल्प वस्तुगत ज्ञान के अहम से अपनी कमियां ढकने का प्रयास करते हैं। खुद तो दुखी रहते हैंए दूसरों को भी पीड़ित करते हैं।
थोड़ा और गहराई में गोता लगाते हैं तो स्वामी विवेकानंद का यह कथन और अधिक स्पष्ट कर देता है। उन्होंने ज्ञान को दो भागों में विभाजित किया है, वस्तु जगत का ज्ञान और आत्मतत्व का ज्ञान। केवल एक ही तरह का ज्ञान हमें पूर्ण मनुष्य नहीं बनाता। जितना बाहर का संसार हमें दिखता है, उससे कहीं ज्यादा अंदर का संसार है। तभी विवेकानंद जी कहते हैं, सामाजिक व्याधियों का प्रतिकार बाहरी उपायों द्वारा नहीं हो सकता है। इसके लिए भीतरी उपायों का अवलंबन करना होगा। मन पर कार्य करने की चेष्टा करनी होगी।
एक और बात तथागत बुद्ध की है, जब उनके शिष्य आनंद उनसे पूछते हैं, सत्य का मार्ग दिखाने के लिए जब आप या आप जैसा कोई दूसरा पृथ्वी पर नहीं होगा, तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे, जानते हैं भगवान बुद्ध ने क्या उत्तर दिया, कोई भी किसी के पथ के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता। केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। यही बातें हैं, जो हमें अपनी कमियों को दूर करने का तरीका बताते हैं।
सवाल है कि फिर भी हमें अपनी कमियां दिखती क्यों नहीं, ऐसा नहीं है कि कमियां नहीं दिखती हैं, दिखती हैं। बशर्ते कि हम उन्हें देखने का प्रयास करें। स्वीकार करें, उन कमियों को दूर करने के लिए चिंतन करें। सकारात्मक रहें।