जागरलोकपरंपरा

यादों के पहाड़ से निकली नवीन पांगती की कविताएं भावुक कर देती हैं…

Johar Mahotsav-2022

बंद घर

अपने ही बंद घर के सामने

इन बंद पाटों

व बंद खिड़कियों के पीछे

धूल में दबी एक सदी

कह रही है मुझे-

अब क्या लेने आए हो?

बंद खिड़कियां

कुछ दशकों से बंद

इस मकान के अहाते में

खेलते मेरे बच्चे

चाहते हैं

इन बंद खिड़कियों को खोलना

चाहता तो में भी हूं.

अपनों का दु:ख

बादल फटा एक गांव बहा

कई सौ मरे आज सवेरे

मेरा ही गांव

और पहचाने से नाम

सोचता रहा मैं

हो गई शाम

काेई एक नहीं जिसे

जानता था मैं

कोई नाम नहीं जिसे

पहचानता था मैं

अपनों ही के दु:ख को

में बांट ना सका

उन सौ लाेगों में अपना

परिवार छांट ना सका

मेरी नम आंखों को देख

बेटी बोली

पापा, आप रो रहे हो?

कुछ मुस्कुराते हुए

मैंने कहा, अरे

मैं समझा आप सो रहे हो?

उसे थपथपाता रहा

कराहता रहा

किसी एक चेहरे को

याद कर रो लूं

बस यही चाहता रहा

यही चाहता रहा

सड़क और स्वर्ग

ऐसा क्यों होता है

कि जहां स्वर्ग है

वहां सड़कें नहीं होती

और जहां सड़कें होती हैं

वहां स्वर्ग नहीं होता

नाना का गांव

कभी गले नहीं लगाया

कोई कहानी नहीं सुनाई

वो जानते थे मेरा

शायद नाम भी नहीं

एक अपरिचित नाम

जिसे मैं नहीं जानता

एक अस्पष्ट सा रिश्ता

जिसे मैं नहीं मानता

अजब है उनका यह गांव भी

ठीक उन्हीं की तरह

जहां उनसे जोड़े बिना मुझको

कोई नहीं पहचानता

अलग थे मेरे नाना

और नानाओं से

और अलग सा

उनके ये गांव

कवि का परिचय

नवीन पांगती का जन्म 1970 में मुनस्यारी तहसील के गांव भैंसखाल में हुआ था. पिथौरागढ़, हल्द्वानी व नैनीताल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करेन के बाद नवीन ने मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज, इलाहाबाद से स्नातक की उपाधि हासिल की. एक वर्ष विज्ञापन जगत में काम करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के इंडस्टि्रयल डिजाईन सेंटर, आइआइटी मुंबई में प्रवेश लिया.

1995 में मास्टर्स ऑफ डिजाइन की उपाधि प्राप्त करने के बाद से वह अधिकांश डिजाइनर, लेखक, फोटोग्राफर व सलाहकार के रूप में स्वतंत्र व्यवसाय कर रहे हैं.

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