मनोवैज्ञानिक डा. रूपाली जोशी से समझें, अपनों के खोने के अवसाद से बाहर निकलने का तरीका
Stress Managment
हम सभी के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब हमारी हिम्मत पूरी तरह टूट जाती है. सब कुछ समाप्त सा होने लगता है और ऐसा लगने लगता है कि अब जिन्दगी में कुछ रह नहीं गया है. किसी भी चीज में रुचि नहीं रह जाती है. सुबह देर तक सोना रात को देर तक जगना, भूख बहुत लगना या बिल्कुल नहीं लगना, छोटी-छोटी बातों में दिल दुखना, गुस्सा करना जैसे लक्षण आने लगते है। अगर ध्यान से देखा जाए तो ये सभी लक्षण डिप्रेशन (Depression) के होते हैं.
और जैसा कि हमको पता है कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य ( Mental Health) के लिए डिप्रेशन कितना बुरा है. ये कठिन समय कई तरह से आ सकता है जैसे माता-पिता या किसी अपने की मृत्यु, अचानक किसी अपने से धोखा मिलना, अपनी संतान को खोना आदि-आदि. ये एक ऐसा समय होता है कि जब आपके पास अनेक लोग होते है पर आपका दुख कोई नहीं खत्म कर सकता.
हर बार ऐसा लगता है काश मैं ऐसा कर लेता, काश उसके पहले मैंने ऐसा बोला होता एक बार मैंने ऐसा सोचा होता और जितने भी काश हमारे दिमाग ( Mind) में आते हैं, उतने ही हम डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं. हमें ऐसा महसूस होने लगता है कि जिन्दगी में अब मेरे लिये कोई नहीं रह गया है.
यह स्थिति अगर लगातार कई दिनों तक बनी रहती है तो अवश्य यह हमारे लिये अच्छा नहीं होता है. किसी अपने को हमेशा के लिये खोने से बड़ा दुःख कुछ नहीं होता. इसलिये हर धर्म में इसके लिये कुछ कर्मकांड नियम बताये गए हैं, जिससे हमारा ध्यान भटके और दुख (Stress) कुछ कम हो सके.
इसके लिये कुछ दिनों तक शोक करने का भी प्रावधान है. जब तक ये कर्मकांड चलते हैं, तब तक तो दुख उतना ज्यादा हम पर प्रभाव नहीं छोड़ता है परन्तु जैसे जैसे समय बीतता जाता है और हम अकेले पड़ने लगते है. हमारा दैनिक जीवन शुरू होने लगता है हम फिर से अवसाद की गिरफ्त में आने लगते हैं.
शुरआत में तो लोग आपके साथ सहानुभूति(Sympathy) दिखाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे लोग अपने आप में व्यस्त होने लगते है और कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हें दूसरों की सहानुभूति लेना बिल्कुल भी पसंद नहीं होता है. ऐसी परिस्थिति में हम क्या करें, जिससे कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य ( Mental Health) प्रभावित न हो.
इसके लिए कुछ जरूरी बातों पर अवश्य ध्यान दें, जिससे की आप अवसाद से बाहर निकल सकें…
1- सबसे पहले तो हमें वास्तविकता को स्वीकार करना पडे़गा कि जो होना था, हो चुका है. अब हम कुछ भी कर लें फिर खोया हुआ वापस नहीं मिलेगा.
2- कुछ लोग ऐसे होते है जो मजबूत दिखने के लिये अपने आंसूओं को नहीं बहने देते. ऐसा करना बिल्कुल गलत है अगर आप अपने दुःख को सही से व्यक्त नहीं करेगें तो कहीं न कहीं आपके ऊपर मानसिक बोझ बना रहेगा, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है.
3- अगर हो सके तो अपने पुराने वातावरण को बदलने की कोशिश करें या बिल्कुल बदल दें.
4- जितना हो सके उस व्यक्ति के लिये जिसे आपने खोया है कुछ न कुछ करते रहिए. जैसे उनके नाम पर किसी को दान देना या उनकी किसी प्रिय चीज को अपने घर पर रखना, उनके प्रिय मित्रों से बात करना आदि.
5- अपने काम या व्यवसाय में पूरा ध्यान लगाइए, इससे आप व्यस्त रहेंगे और आपका मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा.
6-अपने आस पास सुखद वातावरण को रखने की कोशिश कीजिए. सुबह शाम भजन सुनिए या कर्णप्रिय संगीत सुनिए. अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि दुःख या अवसाद को कम करने में कर्णप्रिय संगीत लाभ देता है.
7- घर में किताबों ( Books) की एक रैक बनाइए और हर महीने एक अच्छी किताब पढ़ने का लक्ष्य बनाइए. पढ़ना मस्तिष्क के लिये अच्छा व्यायाम (Exercise) है. यह तनाव से बाहर भी निकालता है.
8- प्राणायाम और योग (Yoga) का सहारा लीजिए. प्राणायाम से हमारे सांसों की प्रक्रिया में सुधार लाता है व हमारा शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रखता है.
9-अपनी दिनचर्या में भोजन की तरह ध्यान (Meditation) को स्थान दीजिए क्योंकि मेडिटेशन हमारी उत्तेजित मानसिक प्रक्रिया को शांत करने में मदद करता है.
10- कोई नई चीज को सीखने की कोशिश करती रहनी चाहिए. नई चीजें सीखने व करने में हमारा दिमाग व्यस्त रहता है और हम सकारात्मकता की तरफ उन्मुख होते है.
11- सक्रिय रहिए, हर किसी से मुस्कुराकर मिलिए, नई चीजों को खोजने, नई जगहें देखने की कोशिश करते रहिए. अगर किसी तरह के शारीरिक स्वास्थ्य से प्रभावित है तो डाक्टर से मिल कर उपचार कराते रहें.
12- परिवार को एक सूत्र में बांधने का प्रयास कीजिए. सबको आदर-सम्मान दीजिए व नियमित रूप से सबके संपर्क में रहिए.
अगर आप इन बातों का ध्यान रखेगे तो आपको तनाव से बाहर निकलने में मदद मिलेगी. अनाश्यक सोचने का मौका नहीं मिलेगा. अपनों को खोने का दुख, बहुत बड़ा होता है, माता-पिता के जाने का दुख तो बहुत पीड़ा देता है. हमें फिर यही सोचकर अपने ध्यान को दूसरी तरफ लगाना है कि भले ही अब वह शरीर से हमारे पास नहीं हैं, लेकिन उनके विचार हमारे पास ही हैं. ऐसे में आप नई जिंदगी की शुरुआत करते हुए न केवल खुद के लिए बल्कि अपने परिवार व समाज के लिए भी उपयोगी साबित होंगे और खुश रहेंगे.
डा. रूपाली जोशी,
मनोवैज्ञानिक
यह भी पढ़ें…