मनोवैज्ञानिक डा. राजेश भट्ट की सलाह, नशा मुक्त उत्तराखंड के लिए जरूरी स्कूल-कालेजों में काउंसलर्स
Uttrakhand drug-free
उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने की शानदार पहल चल रही है. इसमें सभी का सहयोग जरूरी है. नशे की लत कितना खतरनाक है. इसे हर कोई जान रहा है, लेकिन अब जरूरत इसके समाधान पर बात करने की है. समाज से इस घातक बीमारी को खत्म करने के लिए प्रयास करने की है.
युवा नशे के लिए प्रेरित ही न हों. इसके लिए स्कूल-कालेजों में समय-समय पर जागरूकता अभियान चलना जरूरी है. स्कूल कालेजों में काउंसलर्स की नियुक्तियां होनी चाहिए. जिससे कि छात्र-छात्राओं को समय पर उचित काउंसलिंग मिले. वह ड्रग्स के पीछे भागने के बजाय अपनी पढ़ाई और सकारात्मक व सृजनात्मक गतिविधियों पर फोकस कर सके.
नशे की रोकथाम के लिए सामाजिक समर्थन यानी कि सपोर्ट सिस्टम का होना बेहद जरूरी है. यह सपोर्ट ही सामाजिक बुराई को मिटाने में महत्वपूर्व साबित हो सकता है.
नशा सप्लाई करने वाली चेन को तोड़ना बहुत जरूरी है. जिस तरीके से उत्तराखंड सरकार ने रैपिड एक्शन फोर्स गठित किया है. एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स गठित हो रही हैं. यह प्रयास सराहनीय है. इससे बेहतरी की उम्मीद भी जगती है. लेकिन इस काम को पूरी ईमानदारी से करने की जरूरत है.
तमाम ऐसे फर्जी रिहैबलिटेशन सेंटर संचालित हैं, जो नियमों के विरुद्ध हैं. ऐसे सेंटरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. इन सेंटरों में नशा मुक्ति को लेकर काेई काम नहीं हो रहा है.
सरकारी जिला अस्पतालों व बेस चिकित्सालयाें में नशा मुक्ति से संबंधित सेंटर खुलने चाहिए. जहां नशा मुक्ति को लेकर अच्छा काम हो सकता है. अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकते हैं.
नशे की गिरफ्त में आ चुके व्यक्ति के लिए भर्ती की सुविधा होनी चाहिए. क्योंकि इलाज बहुत महंगा होने की वजह से तमाम परिवार ऐसे रिहैब सेंटरों में भर्ती नहीं करा पाते हैं. ऐसे में नशा दोबारा करने के चांसेज बढ़ जाते हैं. इसलिए सरकार को रिहैब सेंटर भी खोलने चाहिए. जहां कम खर्चें में भी बेहतर इलाज की सुविधा मिल सके.
डा. राजेश भट्ट,
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर,
साइकोलॉजी डिपार्टमेंट
दून यूनिवर्सिटी, देहरादून
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