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कुमाऊं का गुस्सैल कलबिष्ट मरने के बाद कैसे हुआ जिंदा…पढ़ें डा. प्रभा पंत की लोककथा

Folktale Of Kumoun कुमाउंनी लोककथा

Folktale Of Kumoun : क गांव में रमौती नाम की एक औरत रहती थी. उसका एक ही लड़का था, जिसका नाम था-कल्याण सिंह बिष्ट. कल्याण सिंह बचपन से ही अत्यंत वीर व साहसी था. बच्चों की तरह वह जंगल के विशालकाय पशुओं से भी भयभीत नहीं होता था. अपने ममेरे भाइयों के साथ, प्रतिदिन वह गाय-भैंसों को चराने जंगल जाया करता था, किंतु जंगल पहुंचकर उसके साथी अपने पशुओं को चरने के लिए छोड़कर, खेलकूद में मग्न हो जाया करते थे. यही कारण था कि अक्सर उसके मामा लोगों की गाय-भैंसें गांव के लोगों के खेत में खड़ी फसल को चर आया करती थीं.

बालक कल्याण सिंह बहुत ही परिश्रमी और बुद्धिमान था. वह अपने पशुओं को चराने के साथ-साथ अपनी मां के लिए भी सूखी लकड़ियां भी बीनकर लाया करता था, जिससे चूल्हा जलाने में उसकी मां को दिक्कत न हो. वह इतना शक्तिशाली था कि विशाल से विशाल वृक्ष को भी क्षण भर में काटकर धराशायी कर दिया करता था. किंतु वह वृक्ष तभी काटता था जब कभी उसे लकड़ियां नहीं मिल पाती थी. वृक्ष काटकर उनमें से अच्छी-अच्छी लकड़ियां काटकर वह अपने घर लाता था और बची-खुची लकड़ियां अन्य जरूरतमंदों को दिया करता था. यही कारण था कि सभी ग्वाल-बाल उसे बहुत अच्छा मानते थे. किंतु उसकी इस अच्छाइयों के कारण उसके ममेरे भाई उससे चिढ़ते थे.

एक दिन की बात है- जब उसके ममेरे भाई अपने पशुओं को चरने के लिए छोड़कर स्वयं उछलकूद में लगे हुए थे और उनके पशु किसी खेत में घुसकर उसकी खड़ी फसल को चर कर रहे थे, तभी अचानक कल्याण की दृष्टि उन पशुओं पर पड़ी. वह अपने हाथ की कुल्हाड़ी वहीं पर छोड़कर, पशुओं को हांकने के लिए आवाज लगाते हुए खेतों की ओर भागा. इसी बात पर अपने मामा के लड़कों से उसकी कहासुनी हो गई. कल्याण सिंह अकेला था और वे संख्या में बहुत अधिक थे. बात में बात इतनी बड़ी कि मारपीट तक पहुंची. अंतत: उन्होंने बदला लेने के लिए छिपकर धोखे से कल्याण सिंह को मार डाला और उसकी गरदन काटकर उसे गड्ढे में दबा दिया.

प्रतिदिन की भांति सायंकाल सभी अपने-अपने पशुओं को लेकर घर आ गए, किंतु उस दिन न तो कल्याण घर लौटा और न उसके पशु. अंधेरा घिरने लगा, धीरे-धीरे जब रात हो आई तो उसकी मां चिंतित होकर उसे पुकारने लगी. परंतु उसके उत्तर में एक बार भी कल्याण की आवाज नहीं सुनाई दी. वह गांव में घर-घर जाकर लोगों से उसके विषय में पूछताछ करने लगी, किंतु किसी ने भी उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. थक हारकर वह घर लौट आई. जब आधी रात तक भी वह नहीं लौटा, तो उसकी मां की बेचैनी बढ़ने लगी, वह रो-रोकर ईश्वर से अपने पुत्र की कुशलता के लिए प्रार्थना करती रही.

रोते-रोते न जाने कब उसे झपकी आ गई, तभी स्वप्न में आकर कल्याण सिंह मां को आपबीती सुनाने लगा. स्वप्न में ही उसने अपनी मां को उस स्थान के विषय में बताया, जिस स्थान पर जंगल में उसे गड्ढा खोदकर दबाया गया था. उसने कहा- मां तू मुझे अपना दूध पिला, यदि मैं तेरी सच्ची संतान होऊंगा तो अवश्य ही जीवित हो जाऊंगा. स्वप्न में मां ने जैसे ही उसे दूध पिलाया, वैसे ही जंगल में वह जीवित हो गया, और संपूर्ण शक्ति लगाकर गड्ढे से बाहर निकल आया.

जिस स्थान पर उसे गड्ढे में दबाया गया था, वहां उसकी दो सौ चालीस बांकड़ी भैंसे, तीन सौ आठ नई ब्याई भैंसें, झपुआ— बड़े-बड़े बालों वाला कुत्ता, चनुआ भैंसे का नाम भैंसा और लखिमा बिल्ली उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उसने सब पशुओं को लेकर कल्याण सिंह घर की ओर चल दिया. पुत्र को आंखों के सामने जीवित देखकर, रमौती की खुशी का ठिकाना न रहा.

कल्याण सिंह बाल्यकाल से ही जोगियों से बहुत चिढ़ता था. बहुत से जोगियाें को वह मौत के घाट उतार चुका था. जब गुरु गोरखनाथ को उसके विषय में पता चला, तो वे उसकी परीक्षा लेने के लिए उसके घर पहुंचे. उस समय कल्याण सिंह अपने पशुओं को चराने के लिए जंगल गया हुआ था.

उसकी मां ने गोरखनाथ से कहा- मेरा बेटा जोगियों से बहुत चिढ़ता है, अनेक जोगी मार चुका है अत: आप यहां से भिक्षा लेकर शीघ्रता से चले जाइए, अन्यथा वह आपको भी मार डालेगा.

गोरखनाथ ने कहा-जहां इतने जोगियों को मार चुका है, वहां एक मैं भी सही. सायंकाल जब कल्याण सिंह पशुओं के साथ घर आ रहा था तो दूर ही उसने अपने द्वार पर बैठे जाेगी को देखा. जोगी को देखते ही क्रोधवश उसने फरसा उठा लिया, और तीव्र गति से घर की ओर आने लगा. जैसे ही वह घर के निकट पहुंचा, गोरखनाथ से उसकी ओर बभूत की फूंक मारी. बभूत शरीर पर पड़ते ही उसका क्रोध शांत हो गया.

उसकी गाय-भैंस सभी पशु स्वत: ही गोशाला की ओर चल दिए. गोरखनाथ भी गाय बछियों के पीछे-पीछे गोशाला चले गए. गोशाला पहुंचते ही सभी अपने-अपने खूंटों पर जाकर खड़े हो गए और गोरखनाथ आराम से गोशाला के द्वार पर बैठ गए.

कल्याण सिंह अपनी मां से बोला- मां मुझे लग रहा है, आज इस जोगी का भी अंतकाल आ गया है. मैं गोशाला जा रहा हूं, गाय भैंसों को बांधकर ओर जोगी को मारकर अभी आता हूं. जब वह गोशाला पहुंचा, तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सभी पशु यथास्थान शांति पूर्वक खड़े हैं. यह देखकर उसका क्रोध फिर से शांत हो गया. वह मन ही मन सोचने लगा-मुझे लग रहा था कि आज गाय-बछियों ने गाेशाला में तोड़-फोड़ की होगी, किंतु ये तो एकदम शांत भाव से खड़े हैं. यह कैसा चमत्कार है, जिस जोगी को मैंने मारने का निश्चय किया है, यह कोई साधारण जोगी नहीं है, अवश्य ही कोई सिद्ध जोगी है। यह देखकर वह असमंजस की स्थिति में आ गया.

वह गुरु गोरखनाथ से बोला- मैंने तुम्हें मारने का निश्चय किया था, किंतु अब मैं तुम्हें नहीं मारूंगा. तुम जो भी मांगना चाहो, मांग लो. गाय, भैंस, बकरी जो भी चाहिए कहो, मैं दूंगा.

गोरखनाथ जी से कहा- मैं और कुछ नहीं मांगूंगा, तू सिर्फ मुझे एक खप्पर भर के दही दे दे. कल्याण सिंह ने सोचा यह कौन सी बड़ी बात है, वह जोगी को लेकर घर आ गया.

उसने अपनी मां से कहा- मां इस जोगी के खप्पर को दही से भर दे.

उसकी मां दही से भरा हुआ एक बर्तन लाई और उसे जोगी के खप्पर में उड़ेल दिया, किंतु खप्पर पूरा नहीं भरा. उसे भरने के लिए वह दही भरा एक और बर्तन ले आई, पर खप्पर फिर भी नहीं भरा. इसी तरह एक-एक कर दही जमाने के पात्र लाकर उन्हें खप्पर में उड़ेलती रही, किंतु खप्पर फिर भी नहीं भरा. जब घर के सभी पात्र खाली हो गए और जोगी का खप्पर भी नहीं भरा, तो कल्याण सिंह समझ गया, यह कोई अवश्य अवतारी जोगी है, जो मेरी परीक्षा ले रहा है. अत: कल्याण सिंह ने घुटने टेककर गुरु गोरखनाथ के चरणों में अपना मस्तक झुका दिया और उनसे क्षमा याचना करने लगा.

गुरु गोरखनाथ ने उसे अपना शिष्य बना लिया. वही कल्याण सिंह बिष्ट कलबिष्ट कलुवा वीर आदि नों से आज भी कुमाऊं क्षेत्र में देवरूप में पूजनीय है।

Dr Prabha Pant
  • कुमाउंनी भाषा से बेहद लगाव रखने वाली डा. प्रभा पंत उत्तराखंड की प्रसिद्ध लेखिका हैं। उनका कुमाऊं में प्रचलित लोककथाओं एवं लोकगाथाओं पर व्यापक काम है। वह 26 वर्षों से अध्यापन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। अब तक उनकी एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें कुमाउंनी लोककथाएं के अलावा कहानी व कविता संग्रह भी शामिल हैं।
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