स्वामी विवेकानंद ने देवभूमि उत्तराखंड की पांच बार की थी यात्रा, आत्मज्ञान भी उन्हें यहीं हुआ था प्राप्त
Swami Vivekanand: Jayanti 12 January
हल्द्वानी। स्वामी विवेकानंद ने उत्तराखंड की पांच बार यात्रा की है. वह प्रकृति से बेहद लगाव रखते थे. पहाड़ का जीवन उन्हें लुभाता था. यही कारण है कि उन्होंने लोहाघाट जैसी जगह पर आश्रम बनाने का निर्णय लिया था. अद्वैत आश्रम मायावती ( Adwauit Ashram Mayawati) नाम से आज यह आश्रम देश-दुनिया में प्रसिद्ध है.
स्वामी विवेकानंद ( Swami Vivekanand) ने आश्रम में अपना काफी समय बिताया था. आज भी उत्तराखंड ( Uttrakhand) में उनके बिताए दिन बहुत ही याद आते हैं. लोगों के लिए प्रेरणादायी हैं. इतना नहीं, उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति भी उत्तराखंड के ही काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे प्राप्त हुई थी. आज भी उस जगह को पूरे शिद्दत से पूजा जाता है. हर जिज्ञासु के लिए वह जगह आकर्षण का केंद्र है. लोग वहां पर ध्यान करने पहुंचते हैं.
स्वामी विवेकानंद का जन्म वर्ष 1863 में कोलकाता में हुआ था. उनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. पिता का नाम विश्वनाथ दत्त व माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था. उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस( Ramkrishan Paramhansh) थे, जिन्होंने उन्हें ज्ञान प्रदान किया था. अपने गुरु के नाम से ही उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी. वह भारत के महान संत व दार्शनिक कहलाए. उनका निधन केवल 39 वर्ष में 1902 में वैल्लूर मठ में हुआ था. जानें उनकी उत्तीराखंड की पांच बार की यात्रा का संक्षिप्त वर्णन:-
पहली यात्रा
स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1888 में नरेंद्र के रूप में हिमालयी क्षेत्र की पहली यात्रा शिष्य शरदचंद गुप्त (बाद में सदानंद) के साथ की थी. गुप्त हाथरस (उत्तर प्रदेश) में स्टेशन मास्टर थे. ऋषिकेश में कुछ समय रहने के बाद वापस लौट गए थे.
दूसरी यात्रा
भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद ने उत्तराखंड में दूसरी यात्रा जुलाई, 1890 में की थी. तब वह अयोध्या से पैदल नैनीताल पहुंचे थे. प्रसन्न भट्टाचार्य के आवास पर छह दिन रुकने के बाद अल्मोड़ा से कर्णप्रयाग, श्रीनगर, टिहरी, देहरादून व ऋषिकेष पहुंचे. इस दौरान तप, ध्यान व साधना की. अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था. कसार देवी गुफा में कई दिनों तक ध्यान किया और उत्तिष्ठ भारत की प्रेरणा प्राप्त हुई.
तीसरी यात्रा
स्वामी विवेकानंद ने उत्तराखंड में तीसरी यात्रा शिकागो से लौटने के बाद 1897 में की. अल्मोड़ा पहुंचने पर लोधिया से खचांजी मोहल्ले तक पुष्प वर्षा की गई थी. वहां लाला बद्रीलाल साह के वह अतिथि रहे. देवलधार एस्टेट में उन्होंने गुफा में ध्यान लगाया था.
चौथी यात्रा
स्वामी विवेकालनंद ने हिमालय की चौथी यात्रा मई-जून 1898 में की थी. इस बीच अत्यधिक श्रम के चलते उनका स्वास्थ्य खराब रहा. इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया. 222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी. बताया जाता है कि इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था. उनके इस भाषण से लोग काफी प्रभावित हुए थे.
पांचवी यात्रा
उत्तराखंड में स्वामी विवेकानंद की अंतिम यात्रा वर्ष 1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी. आश्रम को बनाने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु पर 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे. इस दौरान उन्होंने तप किया था. जैविक खेती की बात की, आज भी आश्रम में जैविक खेती हो रही है.