भाग 4
कुमाउंनी कहावतों की सीरीज में आपको पहाड़ के दर्शन होंगे। पहाड़ के खट्टे-मीठे रंग दिखेंगे। अपनापन महसूस होगा। अगर आप भी इन कहावतों मुहावरों को बोलते रहेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। जड़ों से जुड़ाव का आभास होगा। क्यों न प्रसन्नचित्त की इस अनूठी पहल का हिस्सा बनें। आपको इस तरह के मुहावरे व कहावतें प्रसन्नचित्त डाॅट कॉम पर लगातार पढ़ने को मिलेंगे।
इस सीरीज में में हम हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट की अंकित प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक कुमाउंनी कहावतें एवं मुहावरे : विविध संदर्भ में उल्लिखित चुनिंदा मुहावरे व कहावतें आपके लिए लाए हैं। ताकि दुनिया भर में फैले कुमाउंनी लोग इसका आनंद उठा सकें।
1- गाैंकि सिरि गौनाड़। गांव की सभ्यता उसके गोपथों से। मनुष्य के चरित्र का आकलन उसके आचरण से होता है।
2- गास दिण, बास न दिण। राहगीर को भोजन खिला दें, लेकिन बसेरा न दें। अपरिचित पर विश्वास करना घातक होता है।
3- घ्वड़ बेचियक जस नीन। घोड़े बेचे हुए की सी नींद। चिंतारहित स्थिति।
4- घ्वेड़ कैं चौंठे प्यार। घुरड़ यानी हिरन को चट्टान ही प्यारी होती है।
5- चुणि खाण बार -बार उपाड़ि खाण एक बार। चुनकर खाएंगे बार-बार खाएंगे, लेकिन जड़ से ही उखाड़ कर खाएंगे तो एक ही बार के लिए होगा। संबंधों के लिए भी यही नियम लागू होता है।
6- चेलि थैं कूण, ब्वारि कैं सुणून। बेटी से कहना, बहू को सुनाना। अप्रत्यक्ष रूप से अपनी बात कहना।
7- चेलि परै घरक भन। लड़की पराए घर की वस्तु। इसका मतलब यह हुआ कि पुत्री का असली घर ससुराल ही होता है।
8- चोरकि द्वि आंगुलकि जड़। चोर की जड़ मात्र दो अंगुलि लंबी होती है। झूठ के पांव नहीं होते हैं।
9- च्यल सुधरौ बाबुक हात, चेलि सुधरौ मैक हात। लड़का सुधरे पिता के हाथ और बेटी सुधरे मां के हाथ। मां-बाप के संस्कार उसके बच्चों में दिखाई देते हैं।
10- च्यलक कुनव कि चाण मुनव चाण। बेटे की जन्मकुंडली क्या देखना, माथा देखना चाहिए। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।