भाग-सात
कुमाउंनी कहावतों की सीरीज में आपको पहाड़ के दर्शन होंगे। पहाड़ के खट्टे-मीठे रंग दिखेंगे। अपनापन महसूस होगा। अगर आप भी इन कहावतों मुहावरों को बोलते रहेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। जड़ों से जुड़ाव का आभास होगा। क्यों न प्रसन्नचित्त की इस अनूठी पहल का हिस्सा बनें। आपको इस तरह के मुहावरे व कहावतें प्रसन्नचित्त डॉट कॉम पर लगातार पढ़ने को मिलेंगे।
इस सीरीज में में हम हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट की अंकित प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक कुमाउंनी कहावतें एवं मुहावरे: विविध संदर्भ में उल्लिखित चुनिंदा मुहावरे व कहावतें आपके लिए लाए हैं। ताकि दुनिया भर में फैले कुमाउंनी लोग इसका आनंद उठा सकें।
1- तिर्थाक फल टिपण, झुपड़ि जै के बादण। तीर्थस्थल का पुण्य लाभ प्राप्त होता है, न कि वहां स्थायी निवास करना। अपने काम से काम रखना।
2- त्यर छ भैम, म्यर छ जहर। तुम्हारा है भ्रम, मेरा है जहर। भ्रम से सत्य आच्छादित हो जाता है।
3- त्यर पिसी में म्यर मिसी। तेरे आटे में मेरा आटा मिला हुआ है। दूसरों के काम में व्यर्थ में हस्तक्षेप करना।
4- तयार-म्यार पितर देखील गैज्यू जैबेर। तेरे मेरे पितर दिखेंगे गया जी बोधगया जाकर। परिणाम से कर्म की परीक्षा होती है।
5- लुकरि आस, सरब बास। दूसरों की आशा, स्वर्ग में निवास करने के समान। दूसरों पर निर्भर रहना ठीक नहीं।
6- दैक पौर दडूं। दही का पहरेदार बिल्ला। बेईमान पर भरोसा करना ठीक नहीं।
7- दैबिक मार, खबर न सार। भाग्य की मार की सूचना नहीं होती है। दुर्भाग्य का पता नहीं चलता है।
8- द्वि काख दुखण। दोनों आंखों का दुखना। दोहरी परेशानी।
9- द्वि नौ में द्वि पौ। दो नाव में दो पांव। दो काम एक साथ करना।
10- द्वि घरोंक पौंण भुक मरौ। दो घरों का अतिथि भूख रहता है। भ्रमपूर्ण स्थिति हानिकारक होती है।