कुमाउंनी कहावतों की सीरीज में आपको पहाड़ के दर्शन होंगे। पहाड़ के खट्टे-मीठे रंग दिखेंगे। अपनापन महसूस होगा। अगर आप भी इन कहावतों मुहावरों को बोलते रहेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। जड़ों से जुड़ाव का आभास होगा। क्यों न प्रसन्नचित्त की इस अनूठी पहल का हिस्सा बनें। आपको इस तरह के मुहावरे व कहावतें प्रसन्नचित्त डॉट कॉम पर लगातार पढ़ने को मिलेंगे।
इस सीरीज में में हम हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट की अंकित प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक कुमाउंनी कहावतें एवं मुहावरे: विविध संदर्भ में उल्लिखित चुनिंदा मुहावरे व कहावतें आपके लिए लाए हैं। ताकि दुनिया भर में फैले कुमाउंनी लोग इसका आनंद उठा सकें।
भाग-आठ
1- नकट लगा, कनकट बांच। नकटा लगाए कनकटे का दोष। अपने दोषों को छिपाकर दूसरे की कमियों को दिखाना।
2- आपण गानक ल्यख न ज्वख, दुसरक गान लै जांठिक ट्यक। अपने घेंघे को कोई लेखा-जोखा नहीं, दूसरों के घेघे की लाठी लगाकर दिखाना।
3- नानतिनांक जाड़ ढुंग में। बच्चों का जाड़ा पत्थर में। बचपन की अल्हड़ता से जाड़े का आभास नहीं होता है।
4- खाण दिन सासुक, न खाण दिन ब्वारिक। खाने के दिन सास के, न खाने के दिन बहू के। जीवन में किसी भी तरह का सुख नहीं।
5- नौल गोरुक न पुव धाक। नई-नई खरीदी गाय को नौ-नौ पुलिंदे घास के देना। नवागंतुक की विशेष आवभगत।
6- कलिया कौव करिए, पाणि पिणक असर धरिए। कलिया झगड़ा करना, लेकिन पानी पीने का आसरा जरूर रखना। क्रोध में भी विवेक नहीं खाना चाहिए।
7- बाट भुल दिनक फेर, मति भुल जुगक फेर। रास्ता भूला तो दिन का अंतर पड़ा, बुद्धि भ्रमित हुई तो युग का अंतर पड़ना।
8- मडु फोकेल आफि देखेल। मडुवा बिखरेगा अपने स्वयं ही दिख जाएगा। असलियत स्वयं के सामने आ ही जाती है।
9- माम माथ पन नैं, सुने माथ धन नैं। मामा से बढ़ा रिश्ता नहीं और सोने से बढ़कर धन नहीं। मामा भांजे का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है।
10- रुखकि ढलनी, बज्यावकि पड़नी। पेड़ का ढहना, हवा चलना। विचित्र संयोग।