भाग-2
कुमाउंनी कहावतों की सीरीज में आपको पहाड़ के दर्शन होंगे। पहाड़ के खट्टे-मीठे रंग दिखेंगे। अपनापन महसूस होगा। अगर आप भी इन कहावतों मुहावरों को बोलते रहेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। जड़ों से जुड़ाव का आभास होगा। क्यों न प्रसन्नचित्त की इस अनूठी पहल का हिस्सा बनें। आपको इस तरह के मुहावरे व कहावतें प्रसन्नचित्त डाॅट कॉम पर लगातार पढ़ने को मिलेंगे।
इस सीरीज में में हम हिंदी व कुमाउंनी के प्रसिद्ध लेखक प्रो. शेर सिंह बिष्ट की अंकित प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक कुमाउंनी कहावतें एवं मुहावरे : विविध संदर्भ में उल्लिखित चुनिंदा मुहावरे व कहावतें आपके लिए लाए हैं। ताकि दुनिया भर में फैले कुमाउंनी लोग इसका आनंद उठा सकें।
1-आस् टुटौ जन, पाल पड़ौ जन। आशा टूटे नहीं, दूसरे से मतलब भी पड़े नहीं। यानी आशा हमेशा बनी रहनी चाहिए। ध्यान रहे कि दूसरों की मदद कम से कम लें।
2-इचाव मैंक ढुंग कबखत न फरिक जावौ। मेढ़ में रखा पत्थर कभी भी लुढक सकता है। बीमार और बुढ़ापा मेढ़ में रखे पत्थर की तरह है। कभी भी मृत्यु को प्राप्त हुआ जा सकता है।
3-जई पाताल खै, उई पाताल छेड़ि। जिस थाली में खाया उसी में छेद करना। यानी कि जिसने आपकी मदद की उसकी की बुराई करने लग जाना।
4-एकै खड़ाक पिनाउ। एक ही गड़ढे के पिनालू। समान स्वभाव वाले व्यक्तियों के लिए इस मुहावरे का इस्तेमाल किया जाता है।
5-कच्यार में ढुंग हा्ण, मुख जै लाग। कीचड़ में पत्थर फैंका तो मुंह में कीचड़ आ जाना। अगर आप नीच व दुष्ट व्यक्ति के मुंह लगते हैं तो आपको ही अपमानित होना पड़ता है।
6-कब थोरि हवो, कब खोरि खावो। इसका अर्थ है कब भैंस का बच्चा होगा और कब उसका दूध-दही मिले। इसका तात्पर्य है, ऐसी उम्मीद पाले हैं जिसका अता-पता ही नहीं।
7-काटी तिलवाड़ न जाण, छाड़ी ज्वेक मैत नि जाण। कटे तिलहनों के खेत में तथा परित्यकता पत्नी के मायके नहीं जाना चाहिए। यानी कि भावी खतरों के प्रति सावधान रहना जरूरी है।
8-काणिक के भिजूण, स्यैणिक के बुजूण। अंधी को क्या भिगोना तथा पत्नी को क्या मनाना। यानी कि सबसे आसान कार्य करना।
9- कानौ न कै, कान्दा कै। काना नहीं कहा, काने भैया कहा। किसी दिव्यांग का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
10- कि मेरी जवे हो, कि त्यर नाख काटूं। या ताे मेरी पत्नी बन जाओ या तो तेरी नाक काट देता हूं। अनावश्यक दबाव डालकर स्वार्थ सिद्धि।
कम्रश…