लोभ मन का कफ, क्रोध पित्त रोग, ममता दाद तो ईर्ष्या मन का कोढ़, जानें न दिखने वाली बीमारियों के घातक परिणाम
World Mental Health Day: 10 October
World Mental Health Day: 10 October : प्रसन्नचित्त डेस्क। शरीर में उत्पन्न होनी बीमारी दिख जाती है. इसलिए उसका उपचार भी समय पर संभव हो जाता है. हम लोग भी शारीरिक बीमारियों को लेकर बहुत अधिक चिंतित हो जात है. इलाज के लिए डाक्टरों के चक्कर काटते हैं और उपचार भी करा लेते हैं, लेकिन ठीक इसके विपरीत मानसिक बीमारियों को लेकर बेखबर रहते हैं. कितनी भी अधिक मानसिक परेशानी ही क्यों न हो, लेकिन हम लोग अनदेखी कर देते हैं. जिसका बाद में गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ता है.
संत मैथिलीशरण भाई जी कहते हैं, मानसिक व्याधियों की वैक्सीन सत्संग है. इसलिए हमें अच्छे व सकारात्मक लोगों का ही संग करना चाहिए, जिससे की हमारी मानसिक समस्याएं दूर हो जाएं।
भाई जी का मानना है कि काम का अतिरेक का मतलब यह मन का वात रोग है. इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति सामाजिक मर्यादाएं भूल जाता है.
लोभ का अतिरेक: यह मन का कफ है. इसमें व्यक्ति दूसरे के धन को अपना बनाने का प्रयास करता है.
क्रोध का अतिरेक: यह मन का पित्त रोग है. इसमें व्यक्ति दूसरों को अनावश्यक क्रोध करने लगता है. काम, क्रोध व लोभ तीनों प्रबल होने पर वैद्य कहने लगता हे कि सन्निपात हो गया है. सन्निपात का मतलब है कि व्यक्ति विक्षिप्त की तरह बेतरतीब बोलने लगता है. अर्मायदित व्यवहार करने पर भी उसके औचित्य व अनौचित्य का भेद नहीं कर पाता है.
ममता: यह मन का दाद रोग है. इसमें रोगी को दाद वाले स्थान पर बहुत अधिक खुजली होने लगती है. और वह बार-बार उसे खुजला कर अपने रोग को और बढ़ा देता है. तात्पर्य यह है कि जिसके प्रति उसकी ममता होती है, उसके कार्यों में उचित-अनुचित का विवेक किए बिना उसी को युक्तियुक्त और ठीक बताने की चेष्टा उसे खुजला-खुजला कर घाव बना देना है.
ईर्ष्या: यह मन का कोढ़ रोग है. इस रोग में रोगी के गले में गांठें हो जाती हैं. जिके कंठमाला भी कहते हैं. इसमें व्यक्ति को दूसरों की उन्नति से बहुत बुरा लगता है. इसे तुलसीदास रामचरितमानस में क्षय रोग बताते हैं। यानी की मन की टीबी.
अहंकार: यह मन का डमरुवा रोग है. जिसमें रोगी का शरीर किसी एक जगह पर फूल जाता है. ऐसे में व्यक्ति अपने से अलग किसी को श्रेष्ठ नहीं मानता.
दंभ-कपट-मद-मान : ये सब मन के निहरूआ रोग हैं. दंभ का अर्थ है कि जो नहीं है, उसे दिखाने की चेष्टा. मद का अर्थ है अपनी किसी उपलब्धि पर मदोन्नमत्त हो जाना. मान का अर्थ है दूसरों से अपने सम्मान की आशा करना.
तृष्णा. यह मन का जलोदर रोग है. इसमें व्यक्ति का पेट अत्यधिक बढ़ जाता है. अर्थात असीमित तृष्णा का होना.
मत्सर और अविवेक: ये मन के दो प्रकार के बुखार हैं. इसमें व्यक्ति के शरीर का ताप बहुत अधिक बढ़ जाता है और उसके शरीर में जलन जैसा होने लगता है. ऐसा रोगी अपनी मानसिक कल्पनाओं से अपना ताप बढ़ाता है और फिर दूसरे के प्रति अविवेकपूर्ण मान्यताओं को धारणा बनाकर निर्णय करके मिथ्या दुख को प्राप्त होता है.
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