आत्मविश्वास से सफल होती सफलता की राह
आत्मविश्वास यानी की अंदर से पैदा होने वाला विश्वास। जब हम किसी काम को करना शुरू करते हैं, तो सबसे पहले हमारे मन से क्या निकलता है? हमें क्या अनुभव होता है? कि इस काम को हम कर पाएंगे या नहीं। अगर आपके अंदर काम करने का विश्वास पैदा हो गया है, तो समझो कि आधा काम तो ही ही गया। यही है आत्मविश्वास।
अगर काम को पूरा सकने के प्रति शंका पैदा होने लगे। तब समझ लेना चाहिए कि आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी है। काम पूरा होने पर भी संशय बना रहेगा। साथ ही काम का आनंद भी नहीं ले पाएंगे। यही कारण है कि आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते हैं।
इसलिए जरूरी है आत्मविश्वास
आत्मविश्वास की शक्ति अजेय है। यह आपकी क्षमता को कई गुना बढ़ा सकता है। आपमें असीम शक्ति का संचार कर सकता है। आपको हमेशा सकारात्मक रखेगा। आपको लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगा। आपकी जीत सुनिश्चित कराएगा। आप किसी भी क्षेत्र में काम क्यों न कर रहे हों, आप घबराएंगे नहीं। कदम पीछे नहीं हटाएंगे।
इसी आत्मविश्वास के बल पर दुनिया में महान काम हुए हैं, हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। इसी के चलते तो सैनिक युद्धस्थल पर सीना तानकर खड़ा रहता है। गोताखोर लंबी-लंबी छलांग लगाते हैं। पर्वतारोही शिखरों को चूम आते हैं। विद्यार्थी कठिन से कठिन परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है। निर्भिकता से बीहड़ जंगलों में लंबी-लंबी यात्राएं कर डालते हैं। और भी तमाम काम संभव हो जाते हैं, जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति के लिए असंभव लगता है।
कल्पना की उड़ान को हकीकत में बदलने की शक्ति भी हमें आत्मविश्वास से ही मिलती है। यही वजह है कि थॉमस अल्वा एडिशन ने हजार बार असफल होने के बाद बल्ब का आविष्कार किया। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो सम्मेलन में भाषण दिया।
एक छोटे से उदाहरण के जरिये इसे समझ सकते हैं। पवन नाम का एक विद्यार्थी बहुत अध्ययन करता था। जबकि उसका दोस्त सुनील उससे कम पढ़ाई करते दिखता था। पवन हमेशा डरा-सहमा व शंका से ग्रस्त रहता था। उसे लगता था, इतनी पढ़ाई के बाद भी मैं पास हो पाऊंगा या नहीं। जबकि सुनील मस्त रहता था। जितना पढ़ता था, उसका चिंतन भी करता था। विषय को समझने की कोशिश करता था। उसे लगता था कि मेरी मेहनत सही दिशा में जा रही है। मैं अवश्य सफल हो जाऊंगा। उसके चेहरे से ही आत्मविश्वास झलकता था। कक्षा में दोनों साथ-साथ थे। दोनों ने ग्रेजुएशन किया और सफल रहे। जब प्रतियोगी परीक्षाएं आई। दोनों साथ-साथ तैयारी करते रहे, लेकिन सुनील आइएएस बन गया और पवन कई प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो सका। क्योंकि उसका आत्मबल हमेशा कमजोर रहा। उसमें आत्मविश्वास कभी आ ही नहीं पाया, तो सफल कैसे हो सकता था?
अब आपके दिमाग में एक सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगा होगा कि आत्मविश्वास को कैसे बढाएं? इसकी कोई टॉनिक तो है नहीं कि पी लिया जाए और कांफिडेंस आ जाएगा। तमाम आध्यात्मिक पुरुषों की बात सुनें या फिर सफल व्यक्तियों की कहानी, हर किसी का यही मानना रहता है कि जब आप अपने क्षेत्र, विषय के बारे में अच्छी जानकारी रखने लग जाते हैं। समझ विकसित होने लगती है तो कांफिडेंस खुद ही आपके पास चलकर आ जाता है। चेहरे के भावों से ही आत्मविश्वास झलकने लग जाता है।