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Toxic Positivity : भीतर दर्द और चेहरे पर मुस्कान की मजबूरी, यह दिखावा भी मानसिक समस्या की जड़

Mental Health : Toxic Positivity

Toxic Positivity : प्रसन्नचित्त डेस्क। वैसे सकारात्मक रहना अच्छी बात है. ऐसे में आपकी रचनात्मकता अधिक निखरती है. आप खुद को मोटिवेट रख पाते हैं. ऐसे में न आप खुद को सहज पाते हैं, बल्कि अपने आसपास यानी परिवार, दोस्त व कार्यस्थल को भी पॉजिटिव एहसास कराते हैं, अगर अाप अंदर से दुखी हैं. कष्ट में हैं. पीड़ा सह रह हैं तो भी आप किसी दबाव में चेहरे पर मजबूरी की मुस्कान लिए घूमते-फिरते हैं. अपने दर्द को छिपाते हैं और अपनी पीड़ादायक भावनाओं यानी रियल इमोशंस को शेयर नहीं कर पाते तो यह स्थिति मानसिक व इमोनशनल हेल्थ के लिए बहुत अधिक नुकसानदेह है. यही है टॉक्सिक पाजिटिविटी (Toxic Positivity) .

मनोवैज्ञानिक ( Psychologist) मानते हैं कि अपनी वास्तविक भावनाओं को नहीं दबाना चाहिए. अगर रोने का मन करे तो रो लें. अपनी पीड़ा किसी विश्वसनीय व्यक्ति से साझा करनी है तो अवश्य करें. इससे आप खुद को हल्का महसूस करेंगे. सिर का बोझ कम होगा, लेकिन भावनाओं को दबा देना मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है.

वेरी वेल माइंड के अनुसार, कई बार आपके सामने ऐसे उदाहरण आते हैं. जब कुछ बुरा होता है, जैसे कि आपकी नौकरी छूट जाती है, तो लोग आपसे कह सकते हैं कि बस सकारात्मक रहो. जबकि इस तरह की बातें केवल सहानुभूति रखने के लिए होती हैं.

जब आप किसी तरह के नुकसान का अनुभव करते हैं, तब भी कुछ लोग कह सकते हैं कि सब कुछ एक कारण से होता है. इसलिए खुश रहें।

जब आप निराशा या दुख व्यक्त करते हैं. तब भी कुछ लोगों का जवाब होता है कि आप खुश रहें. अगर कोई नकारात्मक भावनाओं को महसूस कर रहा है, तो उसके पास खुश रहने का विकल्प तो हो सकता है, लेकिन पहले अपनी वास्तविक भावनाओं को अभिव्यक्त करना जरूरी है.

जानें टॉक्सिक पॉजिटिविटी के लक्षण


जब आप कष्ट व पीड़ा में होते हैं
खुद पर किसी बात को लेकर गुस्सा आता है
सच्चाई का सामना करने के बजाय अनदेखी करते हैं
अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं
लगता है कि भावनाएं व्यक्त करने पर लोग मजाक बनाएंगे

टाक्सिक पाॅजिटिव के बजाय सर्पोटिव एप्रोच रखें

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आपको टाॅक्सिक पॉजिटिविटी (Toxic Positivity) से बचने के लिए सर्पोटिव एप्रोच अपनाना चाहिए. आप इंसान हैं. आपके अंदर हर तरह की भावनाएं उमड़ेंगी. इसलिए इन भावनाओं को दबाने, छिपाने के बजाय मैनेज करें.

जब आपको डर लगता है तो डरना स्वाभाविक है. वहां पर बेवजह निडर होने का दिखावा करते हैं. सही भावनाओं को एक्सप्रेस नहीं करते हैं तो आप अपनी सच्चाई को छिपा रहे होते हैं. ऐसे में अपनी भावनाओं की अनदेखी करना ठीक नहीं.

सबसे अधिक जरूरी है कि आप खुद को स्वीकार करें. हर समय एक जैसे इमोशन नहीं रह सकते हैं. इसलिए निर्धारित परिस्थितियों के अनुसार हमारे भीतर पैदा होने वाले इमोशंस को सही तरीके से समझें और उन्हें मैनेज करें.

इस विषय को ओशो की नजर से समझें

काम,, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार! शब्दों से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे बहुत सी बीमारियां आदमी के आस-पास हैं. सचाई यह नहीं है. इतनी बीमारियां नहीं हैं, जितने नाम हमें मालूम हैं. बीमारी तो एक ही है. ऊर्जा एक ही है, जो इन सब में प्रकट होती है. अगर काम को आपने दबाया, तो क्रोध बन जाता है और हम सबने काम को दबाया है, इसलिए सबके भीतर क्रोध कम-ज्यादा मात्रा में इकट्ठा होता है.

अब अगर क्रोध से बचना हो, तो उसे कुछ रूप देना पड़ता है. नहीं तो क्रोध जीने न देगा. तो अगर आप लोभ में क्रोध की शक्ति को रूपांतरित कर सकें तो आप कम क्रोधी हो जाएंगे; आपका क्रोध लोभ में निकलना शुरू हो जाएगा. फिर आप आदमियों की गर्दन कम दबाएंगे, रुपए की गर्दन पर मुट्ठी बांध लेंगे.

ओशो समाधान भी बताते जाते हैं…
सुगमतम मार्ग यह है कि आपके भीतर इन चार में से जो सर्वाधिक प्रबल हो, आप उससे शुरू करिए. अगर आपको लगता है कि क्रोध सर्वाधिक प्रबल है आपके भीतर, तो वह आपका चीफ करेक्टरिस्टिक हुआ. जो भी आपके भीतर खास लक्षण हो, उस पर दो काम करें.

पहला काम तो यह है कि उसकी पूरी सजगता बढ़ाएं. क्योंकि कठिनाई यह है सदा कि जो हमारा खास लक्षण होता है, उसे हम सबसे ज्यादा छिपा कर रखते हैं. जैसे क्रोधी आदमी सबसे ज्यादा अपने क्रोध को छिपा कर रखता है, क्योंकि वह डरा रहता है, कहीं भी निकल न जाए.

वह उसको छिपाए रखता है. वह हजार तरह के झूठ खड़े करता है अपने आस-पास, ताकि क्रोध का दूसरों को भी पता न चले, उसको खुद को भी पता न चले. और अगर पता न चले, तो उसे बदला नहीं जा सकता.
दूसरा, इसके साथ सजग होना शुरू करें. जैसे क्रोध आ गया. तो जब क्रोध आता है तो तत्काल हमें खयाल आता है उस आदमी का, जिसने क्रोध दिलवाया; उसका खयाल नहीं आता, जिसे क्रोध आया.

तो जब क्रोध पकड़े, लोभ पकड़े, कामवासना पकड़े-जब कुछ भी पकड़े-तो तत्काल आब्जेक्ट को छोड़ दें. क्रोध भीतर आ रहा है, तो चिल्लाएं, कूदें, फांदें, बकें, जो करना है, कमरा बंद कर लें. अपने पूरे पागलपन को पूरा अपने सामने करके देख लें. और आपको पता तब चलता है, जब यह सब घटना जा चुकी होती है, नाटक समाप्त हो गया होता है. अगर क्रोध को पूरा देखना हो, तो अकेले में करके ही पूरा देखा जा सकता है.

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