उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में जापानी इंसेफ्लाइटिस से दो की मौत, जानें बीमारी से बचाव का तरीका
Japanese Encephalitis)
Uttrakhand Health News: प्रसन्नचित्त डेस्क । जापानी इंसेफ्लाइटिस (Japanese Encephalitis) का प्रकोप भारत के कई हिस्सों के अलावा अब उत्तराखंड ( Uttrakhand) में भी तेजी से पांव पसार रहा है. पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी के मरीजों की संख्या लगातार सामने आ रही है. पिछले एक महीने में ऊधम सिंह नगर के दो मरीजों की मौत हो गई हैं. इसमें नानकमत्ता की एक 23 वर्षीय युवती भी शामिल है. एक अन्य 60 वर्षीय मरीज काशीपुर का रहने वाला था. इसके साथ ही इसी जिले दो अन्य मरीज प्रभावित हैं. इनका उपचार डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय (STH) हल्द्वानी में चल रहा था.
जापानी इंसेफ्लाइटिस एक तरह का दिमागी बुखार है, जिसका मुख्य कारण वायरल संक्रमण माना जाता है. यह बीमारी विशेष रूप से वायरल मच्छर या सूअर से फैलने वाला संक्रमण है. जापानी इंसेफ्लाइटिस (Japanese Encephalitis) गंदगी की वजह से भी फैलने वाली बीमारी है, जो अलग-अलग स्टेज में हो सकती है.
जेई के मुख्य से तीन चरण
प्रोड्रोमल चरण : यह जापानी इंसेफ्लाइटिस का पहला चरण है. इस स्थिति में ब्रेन एवं स्पाइनल बोन प्रभावित हो जाता है. इस संक्रमण के फैलने का खतरा दो से तीन दिन तक रहता है. इसमें ज्यादातर लोग सिर दर्द, ठंड लगने की शिकायत करते हैं.
तीव्र एन्सेफलिटिक स्टेज : प्रोड्रोमल स्टेज की तरह यह तीव्र एन्सेफलिटिक स्टेज है. इस स्टेज में भी ब्रेन व स्पाइनल बोन में संक्रमण की समस्या होती है, लेकिन इस स्टेज में बुखार तेज हो जाता है. इसके अतिरिक्त मांशपेशियों में ऐंठन, वजन कम होना आदि समस्याएं देखने को मिलती हैं.
रिकवरी स्टेज : जापानी इंसेफ्लाइटिस की समस्या अगर रिकवरी स्टेज में हो तो इस दौरान मरीज को ठीक होने में चार से सात हफ्ते का वक्त लग सकता है. इस स्टेज में बॉडी टेम्प्रेचर कम होने के साथ ही अन्य शारीरिक परेशानी भी कम होने लगती है.
बीमारी के लक्षण जानते हैं डाक्टर से लें परामर्श
सिर दर्द
तेज बुखार
झटके
जी मिचलाना
उल्टी
गर्दन में अकड़
मांशपेशियों में कमजोरी व पक्षाघात
बात करने में दिक्कत होना
बचाव के लिए अपनाएं ये तरीका
पहले सरकारी स्तर पर इसका टीका नहीं लगता था, लेकिन अब सरकार ने बच्चों को टीकाकरण की शुरुआत कर दी है. उत्तराखंड में ही पहले चरण में शहरी क्षेत्रों में ही टीका लगाया जा रहा है। नैनीताल के जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. अजय शर्मा का कहना है कि यह टीका जल्द ही अन्य टीकों की तरह ही लगने लगेगा. इसलिए इस बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण अवश्य कराया जाए.
ये है उपचार का तरीका
डाक्टरों के अनुसार इसका सीधा कोई उपचार नहीं है. लक्षणों के आधार पर ही इलाज किया जाता है. मरीज को वेंटीलेटर में रखने की आवश्यकता पड़ जाती है. कई बार दो से छह सप्ताह तक भी मरीज वेंटीलेटर में रहता है.
पहली बार 1955 में मिला था मामला
भारत में जापानी इंसेफ्लाइटिस (Japanese Encephalitis) का सबसे पहला मामला वर्ष 1955 में देखा गया था. वहीं अपने देश में मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2016 में 1676 मामले सामने आए थे. इसमें से 283 लोगों की मौत हुई थी. यह बीमारी बहुत अधिक घातक है. असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व कर्नाटक में इस बीमारी का प्रकोप ज्यादा है.