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क्या पूरा होगा सीएम धामी का 2024 तक उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने का संकल्प, जानें चार चुनौतियां

Uttrakhand drug-free

राज्य में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति ने आम जनमानस को झकझोर दिया है. कुछ वर्ष पहले तक नशावृत्ति की प्रवृत्ति शहरों व आसपास कस्बों तक सीमित थे, लेकिन अब पहाड़ के गांव भी नशे की बीमारी की चपेट में आ गए हैं. इस दुष्प्रवृत्ति से परिवार उजड़ने लगे हैं. जहां इससे परिवार मे आर्थिक संकट की चोट पड़ रही है, वहीं किसी सुहागिन के माथे का सिंदूर मिट रहा है तो किसी का बेटा-बेटी असामयिक काल-कवलित हो रहे हैं. घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ रही हैं. इसका अंदाजा प्रदेश में तेजी से खुल रहे नशामुक्ति केंद्रों से लगाया जा सकता है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यह पीड़ा समझ आई. वह पहले भी इस विषय पर अधिकारियों से चर्चा कर चुके हैं और सख्ती कार्रवाई को भी कह चुके हैं. 29 जुलाई को देहरादून में अधिकारियों के साथ बैठक में सीएम ने उत्तराखंड को ड्रग्स मुक्त बनाने की बात कही. आगे कहा, प्रदेश में रैपिड एक्शन फोर्स का गठन कर कुमाऊं व गढ़वाल में एक-एक नशा मुक्ति केंद्रों का निर्माण होगा. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड में ड्रग्स का सामना करना बड़ी चुनौती है. नशे के सौदागर युवाओं को निशाना बना रहे हैं. लेकिन इसकी रोकथाम में आबकारी, पुलिस व ड्रग विभाग की अहम जिम्मेदारी होगी.

16 सितंबर को धामी ने देहरादून में अपने जन्म दिन पर पत्रकारों से वार्ता में अपनी प्राथमिकताएं साझा करते हुए कहा कि उन्होंने 2024 तक उत्तराखंड को नशा मुक्त करने का संकल्प लिया है. रैपिड एक्शन फोर्स का गठन प्रदेश, जिला व थाना स्तर पर किया जाना है. सीएम के इस बयान से उम्मीद तो जगती है. साथ ही उनके इरादों को भी पता चला है, लेकिन यह काम इतना अासान है. जितनी सहजता से कह दिया जा रहा है. आइए जानते हैं क्या हैं ये चार चुनौतियां…?

पुलिस के अभियान में ईमानदारी जरूरी
माना कि नशावृति के बहुत से कारण हैं, लेकिन इसके रोकथाम में पुलिस का अहम रोल माना जाता है. बढ़ते मामलों को पुलिस लापरवाही के तौर पर देखा जाता है और चर्चा भी इसी एंगल से ज्यादा होती है. ऐसा कहना काफी हद तक उचित भी है, ऐसा इसलिए कि पुलिस समाज की अहम कड़ी मानी जाती है. नशे के अवैध तरीके से कारोबार करने वालों को पकड़ने और दंड दिलवाना पुलिस का महत्वपूर्ण काम है. इसमें काफी हद तक ढिलाई बरती जाती है.

जानकार कहते हैं कि नशे के कारोबार में राजनीति से जुड़े नेताओं की सांठगांठ रहती है. पुलिस छोटे-छोटे अपराधियों पर कार्रवाई तो करती है, लेकिन नशे के बड़े कारोबारियों पर कोई एक्शन नहीं हो पाता. इस गतिरोध को तोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है.

हालांकि सीएम धामी के रैपिड एक्शन फोर्स के गठन के बाद कुछ पुलिस अधिकारियों की सक्रियता दिख रही है. कुमाऊं में डीआइजी डा. नीलेश आनंद भरणे ने 17 सितंबर को हल्द्वानी में पत्रकार वार्ता की. उन्होंने कहा, नशे की तस्करी करने वालों पर अब एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (एएनटीएफ) काम करेगी. मैदानी जिलों में एसपी क्राइम और पर्वतीय जिलों में सीओ आॅपरेशन के पास कार्रवाई का अधिकार होगा. थाना स्तर पर पांच सदस्यीय टीम बनेगी. इससे न सिर्फ नशे की तस्करी पर अंकुश लगेगा, बल्कि अपराध भी कम होगा. जरूरत होगी कि पुलिस इस मामले में गंभीरता से काम करे.

ड्रग विभाग भी पूरी जिम्मेदारी निभाए
अक्सर देखा जाता है कि ड्रग विभाग लाइसेंस की प्रक्रिया में ही उलझा रहता है. उसके पास दवा दुकानों के निरीक्षण की जिम्मेदारी होती है, ताकि नाकोटक्स व साइकोट्रोपिक दवाइयों जरूरतमंद लोगों के ही हाथों में जाए। पर ऐसा होता नहीं है. दूसरा कारण ड्रग विभाग में स्टाफ की कमी है. करीब 40 प्रतिशत औषधि निरीक्षक कम हैं. यह स्थिति भी नशा मुक्त उत्तराखंड के लिए बड़ी चुनौती है.

सामाजिक दिखावे के चलते युवाओं में बढ़ा नशे का शौक
जिस तरीके से टीनएजर्स व युवाओं काे एक्सपोजर मिल रहा है. घूमने की आजादी मिलने लगी है. ऐसे में युवा सोशल पीयर के दबाव में रहते हैं. वे पहले शौक-शौक में नशा करते हैं और फिर धीरे-धीरे नशे के चंगुल में फंस जाते हैं. जहां से निकलना फिर उनके लिए मुश्किल हो जाता है. सवाल है कि समाज में तेजी से बढ़ती दिखावे की यह सोच बदलेगी?

परिवार का माहौल
जिन घरों का माहौल पाजिटिव रहता है. जहां संस्कारों की सीख मिलती है. बेवजह विवाद नहीं होते हैं. पति-पत्नी, सास-बहू व अन्य परिवार के सदस्यों के बीच आपसी सामंजस्य सही रहता है, ऐसे में संभावना रहती है कि इन घरों के बच्चे नशे की तरफ आकृष्ट नहीं हो सकते हैं. इसके उलट जहां अक्सर झगड़ा होता रहता है. किसी न किसी बात पर एक-दूसरे को टोकने का माहौल है. खुद परिवार के वरिष्ठ सदस्य नशा करते हैं और तनाव का माहौल बनाए रखते हैं. जिन परिवारों में संवादहीनता बनी रहती है. ऐसे परिवारों के बच्चों के नशे की ओर जाने की आशंका कहीं ज्यादा रहती है. प्रसिद्ध विचारक आेशो ने यही कहा है कि युवाओं में नशे का कारण परिवार का माहौल ही है. कई समाजशास्त्री व मनोवैज्ञानिक भी इस तर्क से सहमत नजर आते हैं.

रैपिड एक्शन फोर्स के अलावा क्या हैं नशा मुक्त उत्तराखंड बनाने के उपाय, जानें विशेषज्ञों की राय

डा. रश्मि पंत

एनसीसी व एनएसएस की तरह मानसिक स्वास्थ्य की टीम भी बने- डा. पंत
एमबीपीजी काॅलेज हल्द्वानी के मनोविज्ञान विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष व उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की कुलसचिव डा. रश्मि पंत का कहना है कि उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास जरूरी हैं. सरकार की ओर से गठित टास्क फोर्स को अपना काम पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करना होगा. विश्वविद्यालयो व स्कूल-कॉलेजों में एनएसएस व एनसीसी की तरह की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी टीम बनाई जाए. युवा आयोग का गठन कर समाज के युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए तैयार करना होगा. पुलिस व मनोविज्ञान से जुड़े शिक्षकों व मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम को सक्रिय होकर समाज में जागरूकता अभियान चलाना होगा. युवाओं को रोजगार व स्वरोजगार को लेकर प्रेरित करने वाले कार्यक्रमों को भी बढ़ाने की जरूरत है, जिससे की युवा गलत दिशा में न भटके.

प्रो. आनंद प्रकाश सिंह

पारिवारिक मूल्यों के साथ समाज की सहभागिता- प्रो. आनंद
श्री देव सुमन उत्तराखंड के ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेष में समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष व प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो. आनंद प्रकाश सिंह कहते हैं, उत्तराखंड नशा मुक्त हो सकता है, लेकिन सबसे पहले जरूरी है हर व्यक्ति की जागरूकता. पारिवारिक मूल्यों को विकसित करने की आवश्यकता है. शासन ने नीति बनाई, लेकिन इससे भी अधिक जरूरी है कि इस नीति के क्रियान्वयन में समाज की सहभागिता होनी चाहिए. समाज में हर स्तर पर लोग अभियान का हिस्सा बन जाएंगे तो नशामुक्ति की राह खुल जाएगी.

डा. युवराज पंत

बच्चों के साथ ही अभिभावकों की जागरूकता जरूरी- मनोवैज्ञानिक
डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. युवराज पंत कहते हैं, स्कूल-कालेज व व्यावसायिक संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है. बच्चों के साथ ही माता-पिता व अभिभावकों को भी जानकारी होनी जरूरी है. नशे की गिरफ्त में आ चुके लोगों के इलाज के लिए सरकार की ओर से नशा मुक्ति केंद्रों को खोला जाना चाहिए और चिकित्सालयों में ड्रग डिएडिक्शन यूनिट की स्थापना की करने की जरूरत है. डा. पंत कहते हैं कि सोशल मीडिया व मेन स्ट्रीम मीडिया के जरिये भी नशे के उपचार के बारे में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए.

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