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सेकेंडरी स्टेज के 81 प्रतिशत बच्चों में क्यों हैं तनाव, योग व मेडिटेशन क्यों जरूरी

NCERT SURVET ON MENTAL HEALTH

NCERT SURVEY: प्रसन्नचित्त डेस्क : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने एक सर्वे कराया। इसमें पाया कि सेकेंडरी स्टेज के 81 प्रतिशत बच्चे तनाव (Stress) में हैं. इन बच्चों ने बताया कि उन्हें पढ़ाई, परीक्षा और परिणाम को लेकर चिंता होती है. यह सर्वे छात्र-छात्राओं के मानसिक स्वास्थ्य ( MENTAL HEALTH) को लेकर चौंकाने वाला है. हालांकि एनसीईआरटी ने देश के सभी विद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य समस्या के शीघ्र पहचान के लिए दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं.

एनसीईआरटी के इस सर्वे में पता चला है कि 29 प्रतिशत स्कूली छात्रों में एकाग्रता ( Concentration) का अभाव है और 33 प्रतिशत छात्र ज्यादातर समय दबाव (Pressure) में रहते हैं. इसमें यह भी देखा गया है कि 51 प्रतिशत बच्चों को आज भी ऑनलाइन (Online) चीजों को सीखने में परेशानी होती है, जबकि 28 प्रतिशत बच्चे सवाल पूछने से घबराते हैं।

इस सर्वेक्षण से पता चला कि कम से कम 73 प्रतिशत बच्चे अपनी स्कूल लाइफ से खुश (Happy) हैं, जबकि 45 प्रतिशत इससे असंतुष्ट हैं। इनमें से 33 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अपने मित्रों के समूह के दबाव का भी सामना करना पड़ता है।

कक्षा आठ के बाद जैसे ही बच्चे सेकेंडरी स्टेज पर पहुंचते हैं, उन्हें अपनी स्कूल लाइफ और निजी जीवन में कई चीजों का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति में उनकी संतुष्टि के स्तर पर भी गिरावट देखी गई है.
इस दौर में बच्चों को बोर्ड परीक्षा का डर रहता है। और यही उम्र होती है, जब रिश्तों के प्रति भी उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है. उन पर दोस्तों से लेकर परिवार का भी दबाव रहता है. करियर की भी चिंता सताने लगती है. ऐसे समय में बच्चे असमंजस की स्थिति में आ जाते हैं. तनाव का स्तर भी बढ़ जाता है.


सर्वेक्षण में शामिल विद्यार्थियों में से 43 प्रतिशत बच्चों ने माना कि उन्हें नई चीजें सीखने में अधिक परेशानी नहीं होती है। इसमें कक्षा छह से आठवीं तक के विद्यार्थियों की संख्या सेकेंडरी स्‍कूल वालों से अधिक रही जो क्रमश: 46 और 41 प्रतिशत है.

2002 में ही हुआ है सर्वे
NCERT के मनोदर्पण प्रकोष्ठ की ओर से जनवरी से लेकर मार्च, 2022 तक यह सर्वे कराया गया, इसमें 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कुल 3.79 लाख विद्यार्थियों को शामिल किया गया. सर्वेक्षण में कक्षा छह से लेकर आठ और नौ से लेकर 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों से सवाल पूछे गए. यह रिपोर्ट सितंबर, 2022 के पहले सप्ताह में जारी की गई.

ये दिए हैं स्कूलों को दिशा-निर्देश

NCERT ने इस सर्वे के बाद स्कूलों को जारी दिशा-निर्देशों में कहा है कि विद्यालयों को ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है जहां विद्यार्थियों के एक सुरक्षित वातावरण में विकसित होने की उम्मीद की जाती है. स्कूल प्रबंधन, प्रधानाचार्य, शिक्षक, अन्य कर्मचारी और विद्यार्थी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विद्यालयों में साल में लगभग 220 दिन बिताते हैं. आवासीय विद्यालयों में एक विद्यार्थी द्वारा बिताया गया समय और भी अधिक होता है. इसलिए, विद्यालयों और छात्रावासों में सभी बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण, स्वास्थ्य और भलाई सुनिश्चित करना विद्यालयों की जिम्मेदारी है.

प्रत्येक विद्यालय या विद्यालयों के समूहों को एक मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार समिति बनानी चाहिए. इसकी अध्यक्षता प्रधानाचार्य द्वारा की जानी चाहिए. इसमें शिक्षक, माता-पिता, विद्यार्थी, पूर्व विद्यार्थी सदस्य के रूप में शामिल होंगे, और एक उम्र और लिंग उपयुक्त वार्षिक स्कूल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की योजना और लागू भी करेगा.

शिक्षकों को इन बातों के लिए करें प्रशिक्षित
अगर किसी भी स्कूल के शिक्षक जागरूक और बच्चों की मनोभावनाओं काे समझने वाले होंगे तो निश्चिचत तौर पर वहां के स्कूल का वातावरण बेहतर होगा. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर और अधिक ध्यान दिया जा सकेगा.

इसके लिए जरूरी है कि शिक्षकों को बच्चों में यह देखे कि उसका व्यवहार सामान्य बच्चों से अलग तो नहीं है. दूसरों बच्चों से कैसा व्यवहार रखता है. स्कूल जाने से इन्कार तो नहीं करता है. आचरण संबंधी किसी तरह की दिक्कत तो नहीं है. अत्यधिकत सक्रियता व निष्क्रियता पर भी ध्यान देना चाहिए. सीखने की क्षमता कैसी है. इंटरनेट का जरूरत से ज्यादा उपयोग तो नहीं करता है. इन बाताें को समझने और इसके लिए सही परामर्श देने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए.

माता-पिता को भी हो पूरी जानकारी

एनसीईआरटी ने सिफारिश की है कि माता-पिता, शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रारंभिक संकेतों के बारे में पता होना चाहिए और माहौल ऐसा बनाए कि छात्र खुलकर इस बारे में बात कर सके. अगर अभिभावकों के स्तर से ही मानसिक स्थिति को समझ लिया जाए तो उसे दूर करने के लिए शिक्षकों व काउंसलरों से बात कर लेनी चाहिए.

जरूरी है योग व मेडिटेशन
एनसीईआरटी ने इस समस्या के समाधान के लिए योग (Yoga) व मेडिटेशन ( Meditation) को कारगर बताया है. ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों को नियमित योग का अभ्यास कराया जाए. मेडिटेशन कराया जाए. वैसे भी देखा गया है कि जो बच्चे इनका अभ्यास करते हैं, उनकी एकाग्रता अधिक होती है और तनाव का स्तर भी कम होता है.

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