हम आप जानवरों की तकलीफों को याद क्यों नहीं कर सकते
Ganesh Joshi : Vegetarian

मुझे अच्छी तरह याद है। जब मैं मांस खाता (non vegetarian) था, बड़े चाव से खाता था। तब मुझे पता नहीं था कि मैं भी हिंसाग्रस्त समाज का हिस्सा होने जा रहा हूं। हाईस्कूल तक पहुंचते ही मांस भक्षण करना छूट गया। अंदर से अाती आवाज ने मुझे रोका, एक बार नहीं बार-बार आती आवाज को मैंने जब ध्यान से सुना तो निर्णय लेने में क्षणभर नहीं लगा। गांव में रहते हुए मांस इष्टदेवता के प्रसाद के रूप में लेने की परंपरा है। पता नहीं यह परंपरा कब से चली आ रही थी, लेकिन जब भी मैं मंदिर के सामने बकरों की बलि देते हुए देखता तो मन अप्रसन्न सा हो जाता। दिल उचट जाता। स्कूल में मेरे इन विचारों को बल मिला मेरे हिंदी व संस्कृत शिक्षक शास्त्री जी श्री तारा दत्त जोशी से। सहज, सरल तरीके से पढ़ाते-पढ़ाते वह ऐसी नैतिक शिक्षा दे दिया करते, जो मेरे मन के अंदर भीतर तक समा गई। जिसने मुझे मांस का पूर्णत: परित्याग (Vegetarian) करने में मदद की।
यह संस्करण आज अचानक इसलिए याद आया कि अहा जिंदगी ( Aaha Jindagi) में प्रकाशित सुशोभित की पुस्तक मैं वीगन क्यों हूं पुस्तक के कुछ अंशों को पढ़ रहा हूं। जब इसे पढ़ने लगा तो स्वयं को भी लिखने से नहीं रोक सका। सुशोभित लिखते हैं, दुनिया में सबसे ज्यादा खाए जाने वाले मांस में दूसरे क्रम में है पोर्क। लेकिन सुअर बहुत बुद्धिमान मैमल्स होते हैं, बंदरों के बाद दूसरे नंबर पर। इन अत्यंत बुद्धिमान व सामुदायिक प्राणियों पर सुअरबाड़ों में जो अत्याचार किया जा रहा है, उसके ब्योरे आप पढ़ें तो सिहर उठेंगे। यह हर रोज हो रहा है, लाखोें के साथ हो रहा है। सुअरों के जैसी मर्मभेदी चीत्कार किसी और प्राणी की नहीं। सच में इसे पढ़ते-पढ़ते मैं कभी कानों में गूंजी सुअर की चीत्कार को महसूस कर द्रवित हो उठा।
दुनिया भर में पढ़े जा रहे प्रसिद्ध इतिहासकार युवाल नाेआ हरारी ( Yuwal Nova Harari) लिखते हैं, एग-इंडस्ट्री मेल-चिक्स को अपने लिए गैर जरूरी समझती है। इसलिए कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से उन्हें क्रशर में फेंक दिया जाता है। जीवित, कोमल नर चूजों को वैसी ग्राइंडिंग मशीन में फेंक दिया जा रहा है, जो इस्पात को भी फाड़ सकती है। एक, दो नहीं, लाखों करोड़ों। क्योंकि अंडा देगी मुर्गी और मुर्गा किसी काम का नहीं है। उसका मांस जरूर काम का है लेकिन एक इंडस्ट्रियल फार्म मुनाफे की भाषा में सोचता है।
जबकि श्रीमदभगवत गीता, रामामण, ऋग्वेद जैसे ग्रंथों( Hindu Mythology) में मांस मांस खाने को प्रोत्साहित नहीं किया गया है। सुशोभित यह भी लिखते हैं, अगर आॅक्सर पुरस्कार प्राप्त जोकर जोक्विन फीनिक्स, बुकर पुरस्कार विजेता लेखक जेएस कोट्एजी, उपन्यासकार हरारी अपने करियर की इतनी ऊंचाई पर जाने के बावजूद जानवरों की तकलीफों को याद रख सकते हैं तो आप-हम अपनी-अपनी मामूली क्षमताओं के अनुसार ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

गणेश जोशी , पत्रकार व लेखक