क्यों आता है मन में आत्महत्या का विचार? क्या है समाधान? जानें देश भर के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय
World Sucide Prevention Day 2022
World Sucide Prevention Day 2022 : प्रसन्नचित्त डेस्क : आधुनिक होते युग में जहां हमारे विचार उत्कृष्ट होने चाहिए और जीवन जीने का आनंद दोगुना होना चाहिए था, लेकिन तमाम लोगों के लिए यह सब और मुसीबत ले के आया है. यही कारण है कि आत्महत्या के मामले भी तेजी से बढ़ने लगे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अांकड़ों के मुताबिक हर साल दुनियाभर में 8 से 9 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं. यहां तक कि विश्व स्तर पर हर चौथा व्यक्ति के मौत का कारण आत्महत्या है.
अगर हम देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र को ही देखें, जिसमें छह जिले शामिल हैं। जनवरी, 2022 से जुलाई, 2022 तक 185 लोगों ने अपनी जीवन लीला खत्म कर दी। इसमें सात नाबालिग हैं। यह आंकड़े उत्तराखंड पुलिस ( UTTRAKHAD POLICE) के रिकार्ड में दर्ज है। स्वयं को खत्म करने की यह भयानक प्रवृति समाज में तेजी से बढ़ने लगी है। इसके तमाम कारण हैं।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Sucide Prevention Day 2022 ) 10 सितंबर पर हम जानेंगे भारत के प्रमुख पांच मनोरोग विशेषज्ञों से, जो बता रहें हैं कि आत्महत्या के कारण क्या हैं और रोकथाम के लिए क्या किया जाना चाहिए.
कौन व्यक्ति कर सकता है आत्महत्या?
राजकीय मेडिकल कालेज हल्द्वानी के वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. युवराज पंत का कहना है कि आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों को हम मुख्य रूप से तीन श्रेणी में रखते हैं। पहला, जो व्यक्ति लंबे समय से अवसाद में रहता है। दूसरा, भावावेश में आकर खुद पर अपना नियंत्रण खो देता है यानी कि इंपलसिव बिहेवियर वाला है। तीसरा, जो किसी गंभीर मानसिक रोग से ग्रस्त रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कान में कुछ आवाजें गूंजती रहती हैं। आत्महत्या के विचार ऐसे गंभीर मानसिक रोगियों के मन में ज्यादा आते हैं।
डा. पंत का कहना है कि अभी तक हुए शोध बताते हैं कि 50 से 75 प्रतिशत लोग आत्महत्या से पहले ही संकेत देने लगता है। ऐसे में समझना होता है कि सामने वाले व्यक्ति के अंदर कुछ गलत चल रहा है। वह भविष्य में आत्महत्या कर सकता है। वह उदास रहने वाली बातें करने लगेगा। समाज में अलग ही रहने लगेगा। उसकी दिनचर्या बदल जाएगी। यहां तक कि ऐसी सोच वाले व्यक्ति अपनी शारीरिक बीमारियों की भी अनदेखी करने लगते हैं। बिना इधर-उधर देखे ही सड़क पार करने लगते हैं। उन्हें अपने जीवन से मोह भंग हो जाता है। यहां तक कि कई बार ऐसे व्यक्ति नशे की चपेट में आ जाते हैं। आत्मग्लानि व अपराध बोध की भावना बढ़ने लगती है। अगर हम उन संकेतों को समझ जाएं तो आसानी से ऐसे व्यक्ति की मदद कर सकते हैं।
आत्महत्या के विचार को कैसे रोकें?
स्पर्श न्यूरोसाइकेट्री सेंटर हल्द्वानी, नैनीताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. रवि सिंह भैंसोड़ा का कहना है कि खुद को शांत रखने के बहुत तरीके हैं। सबसे अधिक जरूरी है कि आप श्रीमदभगवत गीता का अध्ययन करें। इस ग्रंथ में तनाव से बाहर निकलने से सारे उपाय बताए गए हैं। जीवन जीने का तरीका सिखाया गया है। इसके साथ ही नियमित योग, व्यायाम करें। हां, घूमने के लिए भी अवश्य समय निकालें। अगर आपका कोई शौक है तो उसके लिए समय निकालें। अगर अाप क्रियटिव रहेंगे तो तनाव आपसे कोसों दूर भाग जाएगा और तमाम झंझावतों के बीच भी आप खुद को सहज पाएंगे। आत्महत्या जैसा तुच्छ विचार आपके मन में नहीं आएगा।
समस्या को समस्या रहने दें, समस्या को जीवन मत बनाओ
सीबीएसई की काउंसलर व मनोवैज्ञानिक डा. कुमुद श्रीवास्तव का कहना है कि समस्या को समस्या ही रहने दी जाए। समस्या को जीवन नहीं बनाएं। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जिस तरह कई रंग होते हैं, उसी तरह जीवन के भी कई रंग हैं। हमें जीवन के उतार-चढ़ाव का अानंद लेना चाहिए। समझना चाहिए कि यही हकीकत है। सबसे अधिक जरूरी है कि हमारा साइकोलाजिकल इम्यून सिस्टम। अगर हमारी मानसिक प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो हम मानसिक के साथ शारीरिक रूप से भी स्वस्थ होने लगते हैं।
दुर्भाग्य है कि जब हम समस्या को गहराई से अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं, वहीं से समाधान की उम्मीद कम होने लगती है और आत्महत्या के विचार मन में आने लगते हैं। डा. कुमुद कहती हैं कि हमें समाज में समस्या से ज्यादा समाधान पर बात करनी चाहिए।
आत्महत्या करने का क्या असर पड़ता है?
जीजीडीएसडी कालेज चंडीगढ़ की मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डा. तरुणदीप कौर का कहना है कि आत्महत्या केवल एक व्यक्ति करता है, लेकिन इसका गहरा असर सबसे पहले उसके परिवार पर पड़ता है। परिवार बिखर जाता है। उससे जुड़े लोग कई वर्षां तक सदमे से नहीं उबर पाते हैं। दूसरा, इसका असर समाज पर पड़ता है। इस तरह की घटनाओं से ऐसे लोग भी प्रेरित हो जाते हैं, जो पहले से ही आत्महत्या को लेकर सोच रहे हाेते हैं।
आत्महत्या की सोच रखने वालों के साथ कैसा व्यवहार करें?
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी में मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डा. सीता कहती हैं कि यह सबसे अहम सवाल है, जिसकी हम उपेक्षा कर देते हैं। समाज में जागरूकता जरूरी है। जागरूकता उन लोगों के लिए अधिक जरूरी है, जिनके दोस्त या फिर परिवार में ऐसे लोग हैं, जिनमें आत्महत्या की प्रवृति विकसित हो चुकी है। उन्हें यह समझना जरूरी है कि ऐसी सोच रखने वालों के साथ मधुर संबंध रखना है। उनकी दिल की बात जाननी और समझनी है। उन्हें सलाह देने के बजाय उनकी बातें ज्यादा सुननी है। उन्हें झिड़कना नहीं चाहिए। अगर आपको लगता है कि उसकी समस्या अधिक बढ़ गई है। वह भविष्य में कभी भी आत्महत्या कर सकता है तो ऐसे व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग करानी चाहिए।
और भी हैं आत्महत्या के कारण
बेरोजगारी
गलाकाट प्रतिस्पर्धा
पारिवारिक कलह
जरूरत से ज्यादा अपेक्षा रखना
सोशल मीडिया का ज्यादा उपयोग
बुलिंग
ट्रामाटिक अनुभव
मानसिक बीमारी
ये हैं आत्महत्या के लक्षण
आत्महत्या की धमकी देना
उदासी होना
नींद नहीं आना
काम में मन नहीं लगना
दिनचर्या प्रभावित होना
अचानक शांत हो जाना
समाज से कटा-कटा रहना
जानें विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की 2022 की थीम
प्रत्येक वर्ष 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Sucide Prevention Day 2022 )बनाया जाता है। इसके लिए IASP यानी इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन 60 से अधिक देशों में प्रोग्राम आयोजित करता है। इस आयोजनों के जरिये आत्महत्या रोकथाम का सन्देश देता है। इसका मकसद है कि विश्व में तेजी से बढ़ रही आत्महत्या दर पर रोक लग सके। इस दिन का प्रतीक चिन्ह पीला रिबन है। 2022 की थीम है ‘Creating hope Through Action’ यानी लोगों के बीच अपने काम के जरिये उम्मीद पैदा करना।
2003 से हुई थी शुरुआत
वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे की शुरुआत इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड (IASP)ने वर्ष 2003 में की थी। आत्महत्या जैसे खतरनाक समस्या के प्रति लोगों को जागरूक कर, इसकी रोकथाम के लिए यह दिन चुना गया।