नशा मुक्ति

स्मैक, ओपियड का नशा छोड़ना क्यों है मुश्किल? मनोचिकित्सक डा. भैंसोड़ा बता रहे समाधान

Uttrakhand drug-free

आज युवा तेजी से स्मैक, ओपियड की गिरफ्त में आने लगे हैं. ऐसा इसलिए कि इसकी उपलब्धता पूरे कुमाऊं में आसानी से हो हो गई है। रुद्रपुर से मुनस्यारी तक गांव-गांव के युवा इस तरह के नशे की चपेट में आ चुके है.

ऐसी स्थिति में पुलिस की सख्ती बहुत अधिक जरूरी है. राज्य सरकार की ओर से नशा मुक्त उत्तराखंड बनाने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स गठित करने निर्णय बहुत अच्छा है. इस पहल का सबसे अच्छा असर यह होगा कि नशा आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकेगा. अगर शुरुआत से ही नशा आसानी से उपलब्ध नहीं होगा तो लत नहीं लग सकती है.

व्यक्ति नशा क्यों करता है? एक और मनोवैज्ञानिक पहलू पर खास ध्यान देने की जरूरत है. कहीं वह बहुत परेशान तो नहीं है. किसी तरह का तनाव, चिंता व अवसाद की स्थिति में तो नहीं है. इसका भी समय रहते समाधान किया जाना बहुत अधिक जरूरी है. जिससे की वह नशे की गिरफ्त में आने से बच सके.

ज्यादातार नौजवान आजकल पियर ग्रुप में रहते हुए शौक के तौर पर नशा करने लगते हैं. शुरुआत एल्कोहल, बीड़ी, सिगरेट, पान-मसाले से करते हैं. अगर यहां तक पहुंच भी गए हैं और नशा छोड़ने की काेशिश करते हैं तो आसानी से छोड़ा जा सकता है, लेकिन इसके बाद युवा स्मैक, ओपियड तक पहुंच गए तो यह घातक हो जाता है.

अगर स्मैक, ओपियड का नशा छोड़ना चाहें तो कई तरह की शारीरिक व मानिसक दिक्कतें होने लगती हैं. एल्कोहल के विड्राॅल सिम्टम्स को मैनेज करना आसान होता है, लेकिन ओपियड, स्मैक जैसे नशे की लत लग जाने के बाद छुड़वाना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे व्यक्ति नशा हासिल करने के लिए कुछ भी करने लगते हैं.

इसलिए हर स्तर पर जागरूकता की बहुत अधिक जरूरत है. पुलिस के साथ ही परिवार, स्कूल, समाजिक स्तर पर भी जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

डा. रवि सिंह भैंसोड़ा, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
स्पर्श न्यूरोसाइकैट्रिक सेंटर हल्द्वानी

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