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ऐसा क्यों होता है, मन में शांति नहीं तो सारा जग अशांत

Peace of Mind

गजो दर्शन

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। बिल्कुल सही कहा है। जब आपका मन खुश होता है तो आपको दुनिया की कोई चीज बुरी नहीं लगती है। सबकुछ अच्छा ही अच्छा लगने लगता है। ठीक इसके उलट, जब मन अशांत रहता है तो पूरा जग हमें अशांत ही नजर आने लगता है। कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यह समस्या किसी एक की नहीं, बल्कि सार्वभौमिक है। मन को हारने यानी अशांत होने से बचाने के लिए हम कई बार कुछ नहीं करते हैं। जबकि तन यानी शरीर के बीमार होने पर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं।

मन की बीमारी का कारण

मन के बीमार होने का एक कारण नहीं, बल्कि अनगिनत कारण हैं। छोटा सा उदाहरण है। अगर किसी ने मेरे साथ बुरा किया। तब मेरे भीतर प्रतिशोध की आग जलने लगती है। ईर्ष्या का भाव पनपने लगता है। मन बार-बार उसी पर चला जाता है, जिससे नकारात्मक भाव पैदा होते हैं। उसी के बारे में सोच-सोच कर मन को दुखी कर डालते हैं। यह तो एक उदाहरण है, ऐसे न जाने कितने विषय हैं। जिनकी वजह से हमारा मन अप्रसन्न हो जाता है। यानी की बीमार हो जाता है।

बीमार मन का प्रभाव
मन की इस गंभीर समस्या का गहरा असर न केवल खुद पर पड़ता है, बल्कि परिवार, स्वजन, मित्रों व कार्य पर भी दिखने लगता है। काम प्रभावित होने लगता है। मन के बीमार होने पर बेचैनी, घबराहट, काम में मन लगना, अपनों से भी बात न करना, खुद से भी परेशानी होना आदि लक्षण प्रकट होने लगते हैं। धीरे-धीरे यह मानसिक समस्या, शारीरिक समस्या में तब्दील हो जाती है। मनोदैहिक समस्याएं घेरने लगती हैं।

मन की बीमारी का खुद बनें डाक्टर
वैसे तो एकदम सही कहा गया है कि मन के हारे हार, मन के जीते जीत। समस्या कहीं और नहीं होती है। हमारे भीतर होती है। इसका उपचार भी हमको ही खोजना होता है। अपने मन को प्रसन्न रखने का उपाय हमारे पास ही है, लेकिन हम दुनिया भर में भटकते हैं, लेकिन हमें कहीं शांति नहीं मिलती। बहुत से उपाय हैं, जिनके जरिये आप मन को जान सकते हैं और मन को दूषित होने से बचा सकते हैं। इसके लिए ध्यान सबसे अच्छा माध्यम है। दूसरा चैतन्यता। जब हम जाग्रत अवस्था में रहेंगे। भूत व भविष्य के चिंता में नहीं खोये रहेंगे तो निश्चित तौर पर हमारा मन वर्तमान पर केंद्रित रहेगा। जब मन वर्तमान में है तो आधी से ज्यादा मनोवैज्ञानिक समस्याएं हमारे आसपास फटकेंगी ही नहीं। अगर बहुत अधिक दिक्कत है तो आध्यात्मिक गुरु, मनोवैज्ञानिक व फिर मनोचिकित्सक से परामर्श भी ले सकते हैं।

चित्त को प्रसन्न करने के लिए जानें भारतीय विद्वानों के विचार

नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। रामकृष्ण परमहंस

उपनिषद जैसे प्रात:काल सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर भाग जाता है, वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएं शांत हो जाती हैं। महर्षि वाल्मीकि

जैसे छोटा सा तिनका हवा का रुख बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

मन का धर्म है मनन करना, मनन में ही उसे आनंद है, मनन में बाधा प्राप्त होने से उसे पीड़ा होती है। नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर

जो इंसान चलते खड़े होते उठते बैठते हर स्थिति में अपने मन को शांत कर लेता है वह जरूर शांति प्राप्त कर लेता है। महात्मा बुद्ध

मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। महर्षि वेदव्यास

मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। श्रीराम शर्मा

मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान ने हमारे हाथ में दे रखी है। स्वामी शिवानन्द

केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन

अगर मन ही मैला है तो बाहरी स्वच्छता का कोई महत्व नहीं है। संत तुकाराम

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